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________________ स्वामी विवेकानंद के दिल की धड़कन बढ़ गई। जैसे ही वे दौड़े कि सारे बंदर नीचे उतर आए और उनके पीछे हो लिए। विवेकानंद आगे-आगे, बंदर पीछे-पीछे। दौड़ते-दौड़ते वह थककर चूर हो गए। अब उनसे दौड़ पाना कठिन था। वह वहीं खड़े हो गए। उनके खड़े होते ही बंदर जहां थे, वहीं रुक गए। वह चौंके, सूत्र उनके हाथ लगा, मेरे रुकने से बंदर भी रुक गए। अगर मैं क़दम इनकी तरफ बढ़ाऊं, तो क्या ये भी एक कदम पीछे चले जाएंगे? उन्होंने साहस करके एक क़दम बंदरों की तरफ़ बढ़ाया, बंदर पीछे हट गए। बस, जीवन में अभय दशा को लाने का सूत्र मिल गया कि तुम भय से भागो मत। भय अपने आप ही भाग जाएगा। तुम अभय हो जाओ। कहते हैं कि तब विवेकानंद बड़े आराम से चलकर उस वृक्ष के पास लौटे। बंदर धीरे-धीरे वृक्ष पर चढ़ गए। विवेकानंद आराम से उस वृक्ष के नीचे सोए, चैन की नींद ली। भय के भूत उतने ही सवार होंगे, जितने कि आप उन भूतों से घबराएंगे। जितने हम निर्भय होते चले जाएंगे, भय के भूत हमसे उतने ही भागते चले जाएंगे। कोई कहता है कि अमुक मकान में मत जाना, उसमें भूत रहते हैं। कोई कहता है कि रात को सोए-सोए ही मुझे भूत दिखाई देता है। कोई कहता है कि मैंने देखा, अपने मोहल्ले में दूर एक सफेद-सा भूत हिल रहा था। उनसे पूछा जाए कि भूत हिल रहा था या किसी आदमी की धोती हिल रही थी? दूर से भूत दिखाई देते हैं, लेकिन जैसे ही उसके पास जाओ, यथार्थ सामने आ जाता है, कथित भूत भाग जाता है। भय : मन का संवेग आदमी सदैव भय से ग्रस्त रहता है। आखिर वे मूलस्रोत, मूल कारण क्या हैं, जिनके चलते आदमी भय की जकड़ में आता है? फ्रायड को पढ़ो या दूसरे मनोवैज्ञानिकों को, वे कहते हैं कि मनुष्य जब से जन्म लेता है, भय की दशा उसके चित्त में सदा-सदा रहती है। मनुष्य अपने साथ मूलतः तीन संवेगों को लेकर जन्म लेता है : पहला है प्रेम, दूसरा है भय और तीसरा है क्रोध । मनुष्य के संपूर्ण जीवन में ये तीन संवेग काम करते हैं। 67 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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