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________________ जब दस साल पहले हम हम्पी में थे, तो मैंने अपनी आंखों से वहां पर शेर, बाघ, सांप-बिच्छू देखे थे। ज़रा कल्पना कीजिए आज से पच्चीस-तीस साल पहले उस साधक ने कंदराओं में कैसे साधना की होगी? ऐसी निर्भय दशा के, निर्भय चित्त के स्वामी को शायद ही मैंने देखा हो। मैं योगी सहजानंदघन की निर्भय चेतना से सहज ही प्रेरित-प्रभावित हुआ। मैं योगिराज शांतिविजय महाराज की भी निर्भय-दशा का अनुमोदन करूंगा। मुझे उनकी गुफाओं में भी जाने और रहने का अवसर मिला। व्यक्ति कोई भी क्यों न हो, ऐसे अभय चेतनाशील पुरुष ही सफलताओं की मीनारों को छू सकते हैं। तेनसिंह और हिलेरी जैसे लोग, जिन्होंने एवरेस्ट की चढ़ाई की, मार्ग में सफेद भालू मिले, पर जिनके चित्त से भय भाग गया, अभय हो गया; भला सांप, बिच्छू, भालू उनके भय का निमित्त कैसे बनेंगे! __ व्यक्ति जानवरों से भयभीत रहता है, पर मैंने नहीं सुना कि आज तक किसी शांत बैठे हुए इनसान को किसी भी सांप ने काटा हो। कोई भी सांप इनसान को तभी काटता है, जब इनसान का पांव सर्प पर पड़ जाए और सर्प भयभीत हो जाए। मैंने कई-कई बार अपने पास से सर्प को गुजरते हुए देखा है। जैसे ही पाया कि कोई सांप गुज़र रहा है, जहां थे, वहीं खड़े हो गए। सर्प आया और पास से गुज़र गया, आगे बढ़ गया। ज्यों ही आप सर्प से भयभीत होंगे. सर्प चौंक उठेगा और डस लेगा, कुत्ते से भयभीत होंगे, तो वह पीछे दौड़ेगा, काट खाएगा। भूत : भय का पिछलग्गू कहते हैं कि स्वामी विवेकानंद बहुत डरा करते थे, जल्दी भयभीत हो जाते थे। एक बार वे किसी जंगल से गुज़र रहे थे। चलते-चलते काफ़ी थक चुके थे, इसलिए एक पेड़ के नीचे पहुंचे विश्राम करने के लिए, मगर जैसे ही वहां बैठने लगे कि तभी देखा कि उस पेड़ के ऊपर आठ-दस बंदर बैठे हैं। जैसे वह बैठे कि ऊपर से एक बंदर नीचे आता दिखाई दिया। वह घबराए और वहां से दौड़ पड़े। 66 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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