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अशोक ने संपूर्ण साम्राज्य में अयुद्ध की घोषण करवाई। एक ओर अहिंसा है और दूसरी ओर अभय। अहिंसा और अभय दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं, एक-दूसरे के पर्याय हैं। अहिंसा और अभय वीरों का आभूषण अहिंसा और अभय भगोड़ों या पलायनवादियों का काम नहीं है। यह तो वीरों का आभूषण है। वह आदमी अपने जीवन में धर्म को नहीं जी पाता, जिसके लिए 'अहिंसा परमो धर्मः' नहीं है। वह आदमी साधना को नहीं जी पाता, जिसके जीवन में अभय दशा उन्नत नहीं हुई है। साधना के द्वार पर तो यक्ष, किन्नर, देव, दानव और न जाने क्या-क्या, किन-किन के घोर परिषह, घोर उपद्रव आते हैं। भगवान महावीर पर केवल एक रात में बीस-बीस घोर उपसर्ग, घोर परिषह हुए थे। ___ हम ज़रा अपनी साधना को, अपनी जीवन-शैली को, अपनी अहिंसा को कुछ ईमानदारी के साथ परखें। हमें पता चलेगा कि क्या हम किसी देव-दानव के दिए जाने वाले परिषद में कामयाब हो सकते हैं? एक चूहे से, एक छिपकली से भय पाने वाला आदमी क्या किसी यक्ष, किन्नर, देव, दानव, भूत-प्रेत के उपद्रव को सहन कर पाएगा? व्यक्ति जब लॉयन्स क्लब का सदस्य बनता है, तो लॉयन कहलाता है। सदस्य बनकर उसे स्वयं में छिपे हुए सिंहत्व को, पुरुषत्व को सार्थक करना होता है; मगर वह दीवार पर चलती हुई एक छिपकली से घबरा जाता है। वह आदमी 'शेर की संतान' कहलाने का अधिकारी नहीं है, जो एक छोटे-से कीड़े से घबरा जाए।
साधना का सोपान अभय बहुत वर्षों पहले हमें हम्पी की कंदराओं में रहने का सौभाग्य मिला। वहां एक बहुत बड़े साधक हुए योगिराज सहजानंदघन । वे अपने पूर्व नाम से भद्रमुनि कहलाते थे। अब तो हम्पी में देशी-विदेशी पर्यटक दिन-रात पड़े ही रहते हैं, लेकिन मैं तो बात कर रहा हूं पच्चीस-तीस साल पहले की। उस समय वे साधक अकेले ही वहां की कंदराओं में रहते थे। कोई भूला-भटका दर्शनार्थी ही उनके पास पहुंचता था।
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