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कांच का गिलास टूट जाए, तो आग-बबूला होने की आवश्यकता नहीं है । आज क्रोध किया, गालियां निकालीं, तो संभव है, कल आपका बेटा भी क्रोध करेगा, संभव है कि वह आपके ख़िलाफ़ कोई विद्रोह कर दे। जब आपके पैर से फूलों का गुलदस्ता टूटा था, तब आपका बेटा शांत रहा था, आपकी मान-मर्यादा की रक्षा की थी, फिर आप क्यों इतने उतावले हैं ? याद रखें, किसी स्प्रिंग को जितना दबाओगे, स्प्रिंग उतनी ही बलवती होगी, वह उतने ही जोर से उछलेगी। थोड़ा धीरज रखो और बेटे को अवसर दो कि उसे अपनी ग़लती का एहसास हो, अपराध-बोध हो । तब वह मन ही मन कह उठेगा, 'सॉरी, यह गलती फिर नहीं होगी ।'
किसी की चार गालियां किसी और को नहीं सुधार सकतीं, वरन स्वयं में जगने वाला अपराध-बोध ही व्यक्ति को सुधारता है । तब आइंदा उसके पांव से कांच का गिलास नहीं टूटेगा । होने वाली गलती के बोध का मौक़ा दो । हां, अगर लगे कि दसों बार अवसर दिया, फिर भी वही गलती हो रही है, तो तुम्हें डांट-डपट का अधिकार है । पिता पुत्र से प्यार भी करे, मगर उतना भी नहीं कि कल इसके दुष्परिणाम उसे ही भोगने पड़ें ।
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मुझमें सामयिक और समता कैसे आई, कैसे मैं क्रोध और प्रतिक्रियाओं से विरत हुआ, इसके पीछे एक प्रेरणा रही । सारे लोग जानते हैं कि भगवान कृष्ण के समक्ष शिशुपाल की मां ने आकर कहा था, 'भविष्यवाणी हुई है कि तुम शिशुपाल का वध करोगे । कृष्ण, मैं तुमसे आज यह वरदान चाहती हूं कि तुम शिशुपाल का वध नहीं करोगे ।' कृष्ण ने कहा, 'बहिन, मैं ऐसा तो कोई वचन नहीं दे सकता हूं। हां, इस बात के लिए ज़रूर आश्वस्त कर सकता हूं कि मैं उसकी निन्यानवे गलतियों को माफ़ कर दूंगा ।'
शिशुपाल की माता ने कृष्ण को धन्यवाद देते हुए कहा, 'इतना भी बहुत है । निन्यानवे गलतियां तो बहुत होती हैं, मैं अपने बेटे को सदा सजग रखूंगी कि तुम कभी भी कृष्ण के प्रति कोई गलती मत कर बैठना ।' लेकिन शिशुपाल एक पर एक गलती करता चला गया, प्रत्येक गलती को दोहराता चला गया । जिस दिन निन्यानवे गलतियां पूरी हुईं कि सौवीं गलती पर सुदर्शन चक्र चल पड़ा। मैं इस घटना
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