SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बचें प्रतिक्रियाओं से प्रतिक्रियाओं से परहेज़ रखो। जिसको जब जो करना है, उसकी माया वह जाने, तू तो अपनी सोच। तू तेरी संभाल, छोड़ सभी जंजाल। तू अगर औरों की सोचेगा, तो अपने आपको डुबो बैठेगा। सब तिरें, सब पार लगें, यह अच्छी बात है, मगर तुम डूबे रहो, यह कौन-सी बात हुई? सारे लोग मुस्कराएं, यह अच्छी बात है, मगर तुम्हारे चेहरे पर मायूसी, रुंआसापन रहे, तो दुखद है। तुम तो इस बात पर ध्यान दो कि तुम मुस्करा रहे हो या नहीं, तुम्हारे चित्त में प्रसन्नता उभर रही है या नहीं। अपनी ओर से जितनी कम प्रतिक्रियाएं करोगे, उतनी ही अधिक सुख-शांति के स्वामी बनोगे। चित्त में शांति कोई ढिंढोरा पीटने से नहीं आती। वह तो अपने आपको प्रतिक्रियाओं की उठा-पटक से मुक्त रखने से ही आएगी। मैंने एक संकल्प लिया था कि सूर्यास्त से सूर्योदय तक चाहे जैसी परिस्थिति आए, चाहे जैसा वातावरण बन जाए, मैं हर हालत में मौन रहूंगा। मैं जानता हूं कि मेरे मौन ने मुझे कितना सुकून, माधुर्य, अंतरात्मा का आनंद दिया है। अपने मौन के दौरान मैंने सदा यह बोध बनाए रखा कि चाहे जलजला आए या कयामत, मैं हर स्थिति में शांत और मौन रहूंगा। परिणामतः किसी भी तरह की प्रतिक्रिया मेरे चित्त में नहीं होती। मैं सहज ही शांत हूं, सुखी हूं। ___ मैंने मौन रहकर जाना है कि जो व्यक्ति अपने आपको प्रतिक्रियाओं से बचाकर रखता है, वह कितना सुखी है। उसके जीवन में सदा गुलाब के फूलों की सुवास रहती है। जो व्यक्ति अपने आप में हर प्रतिक्रिया के बदले में सकारात्मक और तटस्थ रहता है, उसकी मुस्कान में भी चांद-तारों का सौंदर्य और फूलों की सुगंध रहती है। आप अगर चाहते हैं कि हकीक़त में अपने मन में सामयिक और गीता के समत्वयोग को अपने जीवन में उतार लें, तो सीधा-सा सूत्र होगा : अपने आपको प्रतिक्रियाओं से मुक्त और निरपेक्ष रखें। दमन नहीं, सुधार हो डांट-डपटकर किसी को नहीं सुधारा जा सकता, न पिता अपने पुत्र को इस तरह सुधार सकता है, न सासें बहुओं को। अगर बेटे द्वारा 56 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy