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अगर किसी बगीचे में कोई लकड़हारा या सुथार जाता है, तो वह यह टटोलेगा कि किस पेड़ की लकड़ी कैसी है। उसकी नज़र सीधे उस पेड़ की लकड़ी पर जाकर टिकेगी। अगर कोई सौंदर्य प्रेमी व्यक्ति वहां पहुंच जाए, तो वह देखेगा कि फूल किस तरह से खिले हुए हैं और उनसे कैसी महक आ रही है। प्रसन्न हृदय से संसार को देखोगे, तो संसार स्वर्ग नज़र आएगा और खिन्न हृदय से देखोगे, तो संसार नश्वर और नरक है। चित्त के बोझों को नीचे उतार फेंको, ताकि हमारा जीवन आकाश-भर आनंद का मालिक बन सके।
मन को दें सार्थक दिशाएं क्या हैं आख़िर चित्त के बोझ? कौन-से वे पहलू हैं, जो हमारे चित्त में बोझ बनकर दिन-रात हमें पीस रहे हैं, घिस रहे हैं, दबा रहे हैं? मनुष्य का मन हो शांत, निर्भार, पुलकित और ऊर्जस्वित । अगर हम अपने मन को बोझिल और तनावग्रस्त देख रहे हैं, तो चिंतित न हों। मन बदला जा सकता है। बोझों को मन के कंधों से नीचे उतारा जा सकता है। हमारे युग की यह बड़ी उपलब्धि है कि मनुष्य अपनी सोच, समझ और जीने की शैली में परिवर्तन लाकर जीवन को उत्सव का आयाम दे सकता है। मैं ऐसा होता हुआ देख रहा हूं, इसीलिए अनुरोध करता हूं। हम मात्र अपने मन के बोझों को, भारों को समझें और भीतर के निषेधों को रचनात्मकता प्रदान करें। अपनी नकारात्मक प्रवृत्तियां हटाएं और सकारात्मक या रचनात्मक प्रवृत्तियां ग्रहण करें। चिता बुझाएं चिंता की चित्त का पहला बोझ है, दिन-रात मन में पलने वाली चिंताएं। चिता
और चिंता दोनों समान हैं। केवल एक बिंदु का फ़र्क है। चिता मात्र मुर्दे को जलाती है, किंतु चिंता जीवित को भी भस्म कर देती है। इसीलिए चिंता चिता से दस गुनी ज्यादा खतरनाक है। कोई अगर पूछे कि शरीर का ज्वर क्या है? आप कहेंगे, मलेरिया। वहीं कोई पूछे कि मन का ज्वर क्या है? मैं कहूंगा, चिंता। चिंता ही ज्वर है और चिंता ही जरा। चिंता ही अकाल मृत्यु का कारण है।
चिंता का मतलब है, ऐसी सोच, ऐसी घुटन कि यह कैसे हुआ या कैसे होना चाहिए या कैसे होगा। मन में इस तरह की चलने वाली
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