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मन का बोझ हटाएं कोई भी व्यक्ति अपने कंधे पर बोझा तभी तक लादता है, जब तक वह सामान एक जगह से दूसरी जगह तक न पहुंच जाए। उसे तुम मूर्ख न कहोगे, तो क्या कहोगे, जो रात को सोया था, तब तो तकिया लगाकर सोया था और जब दिन में चल रहा है, तो भी तकिए को अपने माथे से लगाकर चलता है। रात के लिए वह सुख का साधन रहा होगा, पर दिन के लिए तो वह चित्त का बोझा बन चुका है। तुम अगर कहो कि मैं भला इस तकिए को कैसे छोड़ दूं, तो यह तुम्हारा बचपना है। ऐसे ही अगर सोचते हो, चिंतन करते हो, मगर उस ऊहापोह से मुक्त नहीं हो पाते, तो वह चिंतन भी चिंता का कारण बन जाया करता है। जब ज़रूरत न हुई तो मन शांत, 'ब्लैंक' कर लिया। यही जीवन को सुख से जीने का सीधा-सरल रास्ता है।
शांत, सजग और उत्साहपूर्ण जीवन का स्वामी होना ही जीवन को उत्सव बनाना है।
साधु-संत लोग शरीर को यातनाएं देते हैं और गृहस्थ लोग हर पल अपनी मानसिक यंत्रणाएं झेलते रहते हैं, कभी क्रोध में, कभी ईर्ष्या में, कभी द्वेष में, कभी वैमनस्य में। जैसे चक्की पीसती है, वैसे ही आदमी दिन-रात अपने मन और चित्त के बोझ से दबा रहता है, पिसता रहता है। मैं कहता हूं, जीवन उत्सव है, जीवन वरदान है। जीवन की हर गतिविधि ईश्वर की ही आराधना है। हमारा हर कार्य प्रभात का पुष्प बन जाए, एक ऐसा पुष्प, जिसे हम सिर पर रख सकें, हृदय को सुवासित करने के लिए प्रयोग कर सकें, परमात्मा को अहोभाव से समर्पित कर सकें। इसलिए तुम हर कार्य को बड़े प्रफुल्लित हृदय से करो। अगर लगता है कि कार्य उल्लसित भाव से नहीं हो रहा है, आपको परिणाम नहीं दे रहा है, तो कार्य को बदलने के बजाय अपने चित्त की दशा को बदलने की कोशिश करो। अगर आप आईने के सामने जाते हैं और आईना आपको आपकी भद्दी शक्ल दिखाता है, तो आईने को बदलने से बात न बनेगी। अपने चेहरे पर एक सुवास भरी मुस्कान ले आओ, आईना अपने आप गुलाब के फूल की तरह खिल उठेगा।
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