SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 27
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रसन्न मन से हो हर काम अगर बेमन से अपने कार्य को संपादित करोगे, तो तुम्हारा हर कार्य तुम्हारे लिए बंधन की बेड़ी बन जाएगा और प्रफुल्लित हृदय से अगर यहां पर झाड़ लगाओगे, तो तुम्हारा झाड़ लगाना भी तुम्हारे लिए मुक्ति का सोपान हो जाएगा। तुम कितने बोझिल मन से अपने जीवन को जीते हो, तुम्हारे लिए जीवन उतना ही बोझिल, बंधन की बेड़ी और नरक का द्वार बन जाएगा। जिंदगी को अगर उत्सव के साथ, बोझिल मन के बगैर जीना आ गया और तुम्हारे सामने शिव प्रकट होकर कहें कि वत्स, तू क्या मांगता है? तुम कहोगे कि अगर देना ही है, तो सदा-सदा यह जीवन ही देना और कुछ नहीं चाहिए। तुम अगर मुझे दुख भी दोगे, तो भी दुख, दुख न लगेगा, क्योंकि मैंने हर दुख को अपने लिए सुख का सेतु बना लिया है। जो व्यक्ति सलीब पर चढ़ाए जाने के बावजूद कहता है कि मेरे प्रभु, तू इन्हें क्षमा कर। ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं? इतनी करुणा, प्रेम की ऐसी रस-धार बहाता है, तुम ज़रा सोचो तो सही, उस व्यक्ति के लिए केवल जीवन ही आनंद का वरदान नहीं होता, मृत्यु भी जीवन का महोत्सव बन जाया करती है। जीवन को बंधन की बेड़ी भी बनाया जाता है और स्वर्ग का सेतु भी। हर अभाव में जीवन को वैसे ही रोशन कर सकते हो, जैसे अंधेरे कमरे में कोई एक दीप जलता है और जैसे कीचड़ के बीच कोई कमल खिलता है। लोग जीवन को बोझिल मन से जीते हैं और बोझिल मन से ही जीवन की गतिविधियों को संपन्न करते हैं। अगर बेटे से यह कह दिया जाए कि बेटा, जाकर ब्रेड का एक पैकेट ले आओ, तो बेटा कहता है, “ओहो, पापा, अब ब्रेड के लिए क्या जाना? मम्मी ने परांठा बनाया है, उसी को खा लीजिए न।" बोझिल मन से ब्रेड खरीदने जाओगे, तो तुम्हें वह ब्रेड भी कुत्ते का भोजन ही दिखाई देगी। प्रफुल्लित हृदय से जाओगे, तो तुम बासी ब्रेड में भी कोई ताज़ी ब्रेड चुनकर ले आओगे, कांटों में फूल तलाश लोगे। कार्य प्रफुल्लित हृदय से किया जाए, तो कोई कार्य बोझिल नहीं होता। कार्य स्वयं परमात्मा की प्रार्थना बन जाता है। 26 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy