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________________ एमएएन (MAN) नहीं बना पाती। आदमी को आदमी बना दे, इसी में शिक्षा की अर्थवत्ता है। शिक्षा कमाने के लिए ही न हो। एक अनपढ़ मजदूर भी अपना पेट पाल लेता है और एक बुद्धिहीन जानवर भी अपना पेट भर लेता है। इनसान कुछ पल के लिए शांत चित्त होकर सोचे कि क्या पेट भरना और पेट भरने के लिए दिन-रात जुटे रहना ही जीवन का उद्देश्य है? निरर्थक जीवन मत जीओ, अपने जीवन में कुछ सृजन करो, धरती को थोड़ा प्रमुदित करो, अपनी ओर से कुछ फूल खिलाओ। कविता के छंदों की तरह लयबद्ध होओ, संगीत जैसा अपने आपको स्वरूप दो। शिक्षा को हमने रोजगार के साथ जोड़ा है, जीवन के साथ नहीं जोड़ा। शिक्षा जीवन के साथ जुड़े और आदमी को यह समझ दे कि उसके जीवन का कोई लक्ष्य है। बगैर लक्ष्य का जीवन जीओगे, तो वह भार हो जाएगा। आप ज़रा सोचें कि ईश्वर ने आपको पूरे सौ वर्ष की जिंदगी दी है। क्या सौ साल की जिंदगी भी अपर्याप्त है? आप अपनी जिंदगी में जीते जी ऐसे इंतजाम कर लें कि मौत जिंदगी के द्वार पर आ खड़ी हो, तो कोई शिकवा न रहे। केंद्रीकरण हो शक्ति का जिंदगी का पूरा-पूरा उपयोग हो। उसके हर अंश का, हर कतरे का। हम मरने के लिए नहीं जी रहे हैं, जीने के लिए जी रहे हैं। जीवन कभी भी क्षणभंगुर नहीं होता, क्षणभंगुर तो मौत होती है। मौत क्षण में आती है और क्षण में चली जाती है। जीवन कभी भी क्षण में नहीं आता, न क्षण में जाता है। जो क्षणभंगुर है, उस पर तो हम अपना इतना ध्यान केंद्रित कर रहे हैं और जिसे हमें पूरे सौ वर्ष जीना होता है, उसके लिए हम पूरी तरह से लापरवाह बने हुए हैं। जीवन में लक्ष्य का निर्धारण करो। अपनी असली संतुष्टि और तृप्ति तब मानना, जब हर दिन लक्ष्य की पूर्ति होती चली जाए और तुम हर दिन को यह मानो कि लक्ष्य की तरफ़ हमारे क़दम आगे बढ़ चुके हैं। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003874
Book TitleLakshya Banaye Safalta Paye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages122
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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