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हम बचपन में खेला करते थे । मां जिस आईने को देखकर अपना चेहरा संवारा करती थी, हम उसे लेकर दोपहर में धूप में बैठ जाते और किसी कागज़ पर उसकी किरणें केंद्रित करते । तुम भी अपनी ज़िंदगी के सारे पुरुषार्थों को अगर कहीं एक जगह पर केंद्रित कर दो, तो पाओगे कि जीवन रोशन हो चुका है। ऐसे ही तुम अपने जीवन की ऊर्जा को कहीं भी केंद्रित कर दो, तो वह ऊर्जा तुम्हारे जीवन के लिए चमत्कार साबित हो जाएगी। वह ऊर्जा मस्तिष्क में केंद्रित हो जाए, तो तुम्हारा मस्तिष्क प्रखर हो जाएगा और तुम्हारे शरीर में किसी दर्द वाले स्थान पर केंद्रित हो जाए, तो उस स्थान की रेकी हो जाएगी, उपचार हो जाएगा।
जीवन की ऊर्जा को अगर केंद्रित करना आ जाए, तो वह ऊर्जा अद्भुत परिणाम देती है। ज़िंदगी का अगर एक लक्ष्य बना दो, तो जीवन का चिराग रोशन हो उठेगा। आप रेलवे स्टेशन पर जाते हैं, तो क्या किसी ऐसी ट्रेन पर सवार होना चाहेंगे, जिसके गंतव्य का कोई पता न हो ? जब आप बिना मंजिल के पते वाली ट्रेन में सवार नहीं होना चाहते हैं, तो आपने ज़िंदगी की गाड़ी को ऐसी पटरी पर क्यों डाल रखा है, जिसका कोई लक्ष्य नहीं है । ज़िंदगी का एक सुनिश्चित लक्ष्य हो ।
कर्मक्षेत्र के अर्जुन हों
कहते हैं गुरु द्रोणाचार्य छात्रों को तीरंदाजी का प्रशिक्षण दे रहे थे । कौरव और पाण्डव सभी एकत्र थे। पेड़ पर एक चिड़िया टंगी हुई थी। सभी से कहा गया उन्हें चिड़िया की आंख पर निशाना लगाना है। एक-एक करके विद्यार्थी आते। सबसे पहले उनसे एक प्रश्न पूछा जाता कि उन्हें क्या दिखाई दे रहा है? कोई कहता कि उन्हें पेड़ दिखाई दे रहा है, कोई कहता कि चिड़िया दिखाई दे रही है, कोई कहता कि दूर क्षितिज तक सारे दृश्य दिखाई दे रहे हैं । उन सबको निशाना लगाने का मौका दिए बिना अलग खड़ा कर दिया जाता। एक-एक करके सारे शिष्य आते हैं, लेकिन सभी किनारे खड़े होते चले जाते हैं ।
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