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अगर हम बीस साल के हैं, तो सोचें कि हमने जीवन का क्या परिणाम पाया? अगर मैं चालीस साल का इनसान हूं, तो मुझे ठंडे दिमाग से यह बात अवश्य चिंतन करना चाहिए कि मैंने अपने जीवन का क्या परिणाम उपलब्ध किया और अगर आप अस्सी वर्ष के व्यक्ति हैं, तो मैं आपसे भी इस बात के लिए आगाह करूंगा कि सोचिए, आपकी हथेली में जीवन का कौनसा उपसंहार समाया है ।
अब तक धर्म-पीठ पर बैठ कर संतजनों ने मानवता को यही संदेश दिया होगा कि मौत तुम्हारे करीब खड़ी है, कुछ तो जागो । मैं आपको सचेत करूंगा कि जिंदगी अभी और बची है, कुछ तो जागो । जो व्यक्ति जिंदगी को जिंदगी का परिणाम दे देता है, वही मौत को भी मौत का परिणाम दे सकता है ।
जो भला जिंदगी को ही परिणाम न दे पाया, वह मौत से गुजर कर मौत को क्या परिणाम दे पाएगा? मुक्ति भी अगर साधना हो तो ध्यान रखें, मृत्यु किसी को मुक्ति नहीं देती । जीवन जीने की बेहतरीन शैली ही आदमी के लिए मुक्ति का भी इंतजाम करती है
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इस बात की फिक्र मत करो कि तुम्हारी उम्र क्या है ? फिक्र इस बात की करो कि तुम अपने शेष जीवन को कैसा, कितना सार्थक परिणाम दे सकते हो ? क्यों न धरती का हर इनसान जीवन को मूल्य देने के लिए तत्पर हो । सोचो, सोच-सोचकर, सोचो कि क्या हम अपने जीवन को कोई सार्थक परिणाम दे सकते हैं? मृत्यु के बारे में नहीं, जीवन के बारे में सोचो। वह व्यक्ति ही जीवन में आत्मविश्वास का संवाहक हो सकता है, जिस व्यक्ति को इस बात का विश्वास हो चुका है कि वह इस पृथ्वी-ग्रह की आवश्यकता है । हम कोई दलदल में पैदा हुए कीड़े नहीं हैं । प्रकृति ने न जाने हमारे लिए कितने सारे इंतजाम किए होंगे, तब हम सब लोग पैदा होकर आए हैं। जैसे ही व्यक्ति को अपनी स्वयं की, अपने जीवन की अनिवार्यता समझ में आएगी, हमारा हमारे परिवार के लिए भी मूल्य हो जाएगा, समाज के लिए भी, सारे पृथ्वी- ग्रह के लिए भी मूल्य हो जाएगा। हम अपना मूल्य समझने लग जाएंगे। हमारी मानसिकता, हमारी विचारशक्ति मजबूत हो जाएगी । प्रकृति ने अगर तुम्हें जन्म दिया है, तो इसलिए कि प्रकृति ने पृथ्वी के लिए तुम्हें आवश्यक समझा । तुम भले ही
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