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कहता हूँ अन्तर के अनंत सागर में डुबकी, तब उन दुष्प्रवृत्तियों को देखने का प्रयास करें और उन्हें बाहर लाएँ। जैसे एक नाविक नौका में भरा हुआ पानी उलीचता है, ध्यान के समय आए हुए विकल्पों को बाहर उलीच दो। तुम्हारी नौका भी पार लगेगी, तुम मंज़िल के करीब पहुँच जाओगे। मोक्ष और निर्वाण उसी दशा का नाम है, जब व्यक्ति का सारा धुआँ समाप्त हो जाता है। ___ अध्यात्म ने एक शब्द दिया है - निर्वाण । निर्वाण – वाण का अर्थ वासना और निर् का अर्थ है मुक्ति । जहाँ व्यक्ति के जीवन में वासना से पूर्णतया मुक्ति हो गई वहाँ निर्वाण की दशा घटित हो गई। जीवन में समाई हुई वासनाएँ, दुष्प्रवृत्तियाँ बाहर आ गईं और अन्दर का पात्र रिक्त हो गया, इसी रिक्तता का नाम निर्वाण है। निर्वाण वह दशा है जहाँ ज्योति तो जलती रहे पर उसमें उठने वाला धुआँ समाप्त हो जाए। ज्योति तो सबके अन्दर जल रही है पर वह निर्धूम नहीं है। ध्यान वह कला देता है जिससे तुम निर्धूम हो जाओ, तुम्हारी बेहोशी समाप्त हो ओर होश जाग्रत हो जाए।
ध्यान अर्थात होश और संसार अर्थात् बेहोश। जब तक तम्हारे भीतर बेहोशी रहेगी संसार घटित होता रहेगा और जैसे ही तुम होश से भरोगे समाधि पैदा होगी।
मुझे याद है भगवान बुद्ध के पास उनका शिष्य आनन्द पहुँचा और कहा, आपने मुझे बाहर जाने का आदेश दिया है, लेकिन मेरे मन में शंका है। यदि मुझे रास्ते में स्त्रियाँ मिलें तो उनके प्रति क्या व्यवहार करूँ। बुद्ध ने कहा, अपनी नज़र झुकाकर आगे बढ़ जाना। आनन्द ने कहा, प्रभु नज़र नीचे झुकाकर जाना संभव न हो, उन्हें देखना अनिवार्य हो जाए तो? बुद्ध ने कहा, ठीक है उन्हें देखते रहना पर छूना मत। आनन्द ने फिर प्रश्न किया, प्रभु अगर कोई स्त्री ज़मीन पर गिरी हो, असहाय हो, दु:खी हो, बीमार हो, पीड़ित हो उस समय छूने की आवश्यकता पड़ जाए तो? एक मिनट मौन रहकर बुद्ध बोले, आनन्द तुम जाओ। जो आवश्यकता पड़े देखना, छूना, सब करना पर अपने होश को साथ रखना। यदि तुम्हारा होश साथ है तो चाहे जो करोगे पर निर्लिप्त ही वापस आ जाओगे।
गौतम बुद्ध ने आनन्द से बहुत कीमिया बात कही। भीतर से होश रखना फिर तुम भटक न सकोगे। अन्यथा बाहर से तो आँखें बंद कर लोगे और भीतर कलुषता आती रहेगी। आनन्द भगवान द्वारा दिए गए होश के दीपक को लेकर रवाना हो गया बिना कोई प्रतिप्रश्न किये। ___ यदि होश का दीपक साथ है तो जीवन में कितनी ही विषमताएँ आएँ, दुर्व्यसन हों, दुर्घटनाएं घटित हों सब पीछे छूट जाएँगे। आचार्य कुन्दकुन्द के अनुसार, किसी बेहोश व्यक्ति के हाथों हिंसा न होने पर भी वह हिंसा का भागी बन जाता है लेकिन
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