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________________ होशवान के पैरों तले चींटी भी आ जाती है, तो वह हिंसा का पात्र नहीं होता। बेहोशी और होश का फ़र्क देखिए, दो चदरिया हैं - एक साफ सूखी हुई और दूसरी चिकनी। दोनों चदरिया मिट्टी, बालू के टीले पर रख दीजिए। दोनों बालू को पकड़ेंगी लेकिन चिकनी चदरिया को आप कितना भी झटकें वे कण वापस उतरने वाले नहीं। चिपके ही रहेंगे। दूसरी सूखी चदरिया को चाहे जितना धूल कणों से भर दो, टीले पर रगड़ दो लेकिन जैसे ही एक झटका दोगे सारे कण नीचे गिर जायेंगे। होशवान व्यक्ति के जीवन में बालू के कण आयेंगे। वह एक झटका देगा और सब कण नीचे आ जायेंगे। मेरा आपसे यही कहना है कि चदरिया सूखी रखो और बाल में भी रहो पर होशपूर्वक। होश हो, तो कर्म की धूल उड़ेगी लेकिन वह बिल्कुल वैसी ही होगी जैसे सुखी चदरिया पर रेत का लगना है। जीवन के लिए बस इतना ही काफी है कि होश हो । साधक को दिन में ही होश रहे इतना ही नहीं वरन् नींद में भी होश बने रहना चाहिये। ठीक वैसे ही जैसे भारंड पक्षी होता है। एक देह दो मुँह । एक सोता है तो दूसरा पहरा देता है और जब दूसरा सोता है, तो पहला जागृत रहता है। होशपूर्वक जीने की कला अपनानी चाहिये। साधना की मूल पृष्ठभूमि होश ही है। मन की उच्छृखल वृत्तियों पर अपना अंकुश और स्वामित्व बनाये रखने के लिए होश बेहिसाब लाजिमी है। चेतना को होश चाहिये, होश हो तो चेतना का फूल सदा खिलखिलाये रहता है। महकता-महकाता रहता है। एक ऐसी आवाज़ है जो अन्तर के नासापुटों को सदा आह्वादित करती है, प्रमुदित करती है। 92 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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