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________________ 000*60 भीतरकी चाँदनी तमिलनाडु की यात्रा में, मैं एक परिवार में ठहरा हुआ था। वहाँ घर के बाहर एक पिंजरे में एक प्यारा-सा पक्षी था। मैंने देखा कि वह पिंजरा लोहे की सलाखों का न था, अपितु उसके चारों ओर काँच की दीवारें थीं। मुझे कुछ आश्चर्य हुआ। मैंने सोचा ऐसा कौन-सा कारण है जिसके चलते पिंजरा लोहे की सींखचों का न होकर काँच की दीवारों से घिरा हुआ है। पक्षी पिंजरे में कैद, पर पारदर्शी आवरण में उसे बाहर का सारा दृश्य दिखाई दे रहा है। शुरू-शुरू में तो पक्षी ने काँच पर चोंच से चोट भी मारी होगी, पंख भी फड़फड़ाए होंगे, बाहर निकलने की कोशिश भी की होगी, पर धीरे-धीरे उसने जाना होगा कि मेरा आकाश बस इतना ही है। चोंच से चोट भी बंद कर दी, पंख भी समेट लिए, उड़ने की चेष्टा भी रोक दी और उसी काँच के पिंजरे में वह पक्षी आराम से जीने लगा। धीरे-धीरे तो उसे पंखों के उपयोग का भी ज्ञान न रहा। उसे लगा उसका सुख इसी पिंजरे के संसार में है। वह बाहर का विश्व देख रहा था, फिर भी उसे लगा उसका संपूर्ण अस्तित्व इसी पिंजरे में है। ___मनुष्य की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है । एक पारदर्शी काँच में मनुष्य जकड़ गया है। जहाँ से वह बाहर के अस्तित्व को देख तो रहा है लेकिन इस पारदर्शी पिंजरे से बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। मनुष्य अपने ही मनोविकल्प में इतना जकड़ गया है, इस कदर कैद हो गया है कि मुक्त होना और मुक्ति का रसास्वाद करना उसके लिए दुर्लभ बन गया है। यही कारण है कि आज हर व्यक्ति चाहे वह पढा 72 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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