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________________ लिखा है या अनपढ़, एक विशेष प्रकार के तनाव में जी रहा है। ऊहापोह भरे विचारों में विचरते हुए अव्यक्त तनाव से घिरा हुआ है। ___ माना कि विचार करना मनुष्य के लिए आवश्यक है तब इस सत्य को स्वीकार कर लेना चाहिए कि निर्विचार होना भी मनुष्य के लिए आवश्यक है । वह जीवन भर, वर्ष, माह, दिन, हर घड़ी विचार-प्रवाह में ही बहता रहा तो निश्चित ही पागल हो जाएगा। लेकिन प्रकृति ने ऐसी व्यवस्था कर रखी है। कि आपको विश्राम करना ही होता है। सारी रात आप मीठी नींद में गुजार देते हैं, तब कोई विचार नहीं होते फिर सुबह आप तरोताजा उठते हैं। तीन दिन, केवल तीन दिन आप चौबीस घंटे में झपकी भी मत लीजिए, फिर देखिए आपकी क्या दशा होती है। आप चिड़चिड़े हो जाएँगे, अनावश्यक क्रोध घेरेगा, आलस्य चढ़ेगा, झुंझलाहट होगी, और यह सब न सोने का परिणाम है। अनिद्रा के रोगी को देखा है? हर समय विकल्पों की श्रृंखला आपको बेचैन कर देगी, अधिक समय तक आपको सामान्य न रहने देगी। आप उचटे से हो जाएँगे। व्यक्ति पागल क्यों होता है? विचारों का आधिक्य उसे अपने आप में नहीं रहने देता। अपनी क्षमता से अधिक वह विचार करने लगता है। मस्तिष्क के कोषों की जितनी विचार करने की क्षमता थी उससे अधिक जब वह विचार करने लगा और वे कोष क्षीण होने लगे तो अन्ततः पागलपन/उचाटपन उतरने लगा। नब्बे फीसदी लोग चौबीस घंटे व्यक्त-अव्यक्त विचारों में खोये रहते हैं। उनके मस्तिष्क में उथलपुथल मची रहती है। यह नहीं कि वे कोई सार्थक चिंतन कर रहे हैं बल्कि उनका सिर ऐसा कूड़ादान बन गया है जिसमें अनर्गल विचारों का आलोड़न होता रहता है। परिणाम यह होता है कि उनके दिमाग में विधायक विचार आ नहीं पाता। उनकी विचार करने की क्षमता क्षीण हो जाती है। माना कि सत्य के अनुचिंतन के लिए विचार आवश्यक है लेकिन ध्यान रहे सत्य की उपलब्धि के लिए निर्विचार होना उससे भी अधिक आवश्यक है। आप भवन में आने के लिए सीढ़ियों का उपयोग कर रहे हैं, ठीक है लेकिन भवन में प्रवेश करने के लिए सीढ़ियों को छोड़ना भी आवश्यक है। अगर हम यह सोचें कि जिन सीढ़ियों ने मुझे मंदिर तक पहुँचाया है उन्हें कैसे छोड़ें तो भगवान की सूरत के दर्शन कैसे कर सकोगे। जिस स्कूटर ने तुम्हें दूकान से घर तक पहुँचाया और तुम उसे न छोड़ो, उसका आभार ही मानते रहो तो घर के अन्दर नहीं पहुँच पाओगे। माना कि नदी को पार करने के लिए नौका की आवश्यकता है लेकिन तट पर पहुँचकर नौका को छोडना भी आवश्यक है तभी तो किनारे लग सकोगे। मैं आप लोगों से कहना चाहता 73 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
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