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महावीर ने कहा- मनुष्य ध्यानपूर्वक भोजन करे, ध्यानपूर्वक चले, ध्यानपूर्वक बैठे, सोये, सारे कृत्य ही ध्यानपूर्वक करे । जो हर कार्य को बोधपूर्वक संपादित करता है, उसके पापकर्म का बंधन नहीं होता।
व्यक्ति गुफा में बैठा है या घर में, फिर यह बात गौण है जब तुम्हारा जीवन ही ध्यानमय है। हिमालय की गुफा में रहने वाला संत भी क्रोध और कषाय को, तृष्णा
और लालसा को, काम और वासना को पैदा कर सकता है लेकिन यहाँ घर में रहने वाला, व्यवसाय में जुटा व्यक्ति भी अपने को घर और व्यवसाय से उपरत कर सकता है। पति-पत्नी, संसार-घर सब हमारे भीतर है। पत्नी को विचारों में साथ लेकर हिमालय की गुफा में भी चले जाओगे तो वहाँ अकेले रहते हुए भी संसार में जिओगे
और घर में रहकर यदि अनासक्त जीवन अपना लिया है तो संसारी जीवन में भी संन्यास के फूल खिल आएँगे। फिर जहाँ हम होंगे वहीं संन्यास का मार्ग होगा। __कहते हैं भगवान बुद्ध अपनी पत्नी यशोधरा को अमावस्या की अर्धरात्रि में छोड़कर जंगलों में चले गए। परमज्ञान उपलब्ध हुआ। एक दिन विचरण करते हुए भगवान राजमहल पहुँचे। वहाँ यशोधरा भी थी। उसने पूछा, तुम मुझे अर्धरात्रि में छोड़कर क्यों गए थे? बुद्ध ने कहा, सत्य की तलाश में । अब मैं सत्य को उपलब्ध हो चुका हूँ। यशोधरा ने पुन: कहा, बुद्ध तुमने तो परमज्ञान उपलब्ध कर लिया, लेकिन मैं तुमसे एक बात पूछना चाहती हूँ कि जिसे तुमने जंगलों में जाकर उपलब्ध किया, क्या वह राजमहल में रहकर उपलब्ध नहीं कर सकते थे? कहते हैं यशोधरा के इस प्रश्न के जवाब में बुद्ध मौन रहे। उन्होंने वहाँ स्वीकार किया कि यदि व्यक्ति अनासक्त हो चुका है, साक्षित्व गहरा गया है तो वह जहाँ है वहीं रहते हुए परमतत्त्व को, परमज्ञान को, शाश्वत सत्य को उपलब्ध कर सकता है।
हम लोग अभी तक वनों की तलाश कर रहे हैं, स्वयं की तलाश करना भूल गए हैं। स्वयं की तलाश का पहला साधन है- जीवन में अनासक्त-भाव को पैदा करें। जहाँ-जहाँ हमारी आसक्ति के तार जुड़े रहते हैं वहाँ हमारी चित्त की चंचलताओं के सूत्र भी बँध जाते हैं। जैसे-जैसे हमारे संबंध हल्के होंगे, भीतर अनासक्ति का भाव पैदा होगा, वैसे-वैसे हमारे चित्त के, मन की अचंचलता के सूत्र हमारे हाथ में आते जाएँगे और मन खुद ही शांत होता जाएगा। पहले कोलाहल कम होगा और बाद में, धीरे-धीरे शांत हो जाएगा।
हमारे संबंधों का जितना विस्तार होगा, मन की चंचलता का भी विस्तार होता जाएगा। एक बच्चे की अपेक्षा युवक का मन अधिक चंचल होता है और युवक से भी अधिक वृद्ध का। चित्त, मन और विचारों की चंचलता के सूत्र बढ़ते चलते जाते हैं।
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