SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 113
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भी और किसी भी स्थिति में प्रकट हो सकता है। तुम सब्जी पकाते हुए भी परमात्मा के प्रसाद को पा सकते हो। कपडे की सिलाई करते-करते भी परमात्मा के अनुग्रह को हासिल कर सकते हो। इसलिए केवल पद्मासन में ही ध्यान पर जोर मत देना। चलते समय भी इस बात का ध्यान रखना कि तुम्हारे पैरों तले कहीं कोई चींटी न आ जाए। बोलते समय इस बात का ध्यान रखना कि मुँह से कोई अपशब्द न निकल जाए और भोजन करते समय इस बात का ध्यान रखना कि कहीं कोई अशुद्ध भोजन न कर लिया जाए। तुम जहाँ हो, जैसे भी हो, अगर ध्यानपूर्वक जीवन जी रहे हो, तो वहाँ मानो परमात्मा को जी रहे हो। बुद्ध को परमात्म-दर्शन पद्मासन में हुआ था। महावीर को कैवल्य उकड़ आसन में उपलब्ध हुआ। ईसा को ईश्वरत्व सूली ने दिया, तो सुकरात को ज़हर के प्याले ने, रैदास ने जूते की सिलाई करते-करते चेतना को उपलब्ध किया, तो कबीर ने चदरिया को बुनते-बुनते। तुलसीदास को रामायण में राम दिखाई दिये और गोरा को मिट्टी में। मीरा का परमात्मा घुघरू में पैदा हुआ और सूरदास का इकतारे में। इसलिए चेतना की जाग्रति होने के बाद परमात्म-दर्शन केवल मंदिर, मस्ज़िद और गिरजाघर में नहीं होता बल्कि वहाँ भी होता है जब इंसान के भीतर मंदिर, मस्जिद और गिरजाघर आ जाते हैं। __ हमारे कृत्य ध्यानपूर्वक होने चाहिये। प्रमाद से दोनों ओर नुकसान है । अगर नींद में रहे तो भी नुकसान है और सपने में जीए तो भी। स्वप्न भी बेहोशी है और निद्रा भी। मुझे कोई पूछे कि साधना का सार क्या है? तो मैं कहूँगा कि जगे-जगे जीना ही साधना है। वह आत्म-साधक साधना के मार्ग में कई मील के पत्थर पार कर चुका है, जो बाहर से तो भले ही सोया है लेकिन भीतर की चेतना जग रही है। भीतर की चेतना जगने का मतलब हुआ स्वयं को उपलब्ध होना, स्वयं का स्वयं को साक्षात्कार होना। आत्मज्ञानी वही है जिसने अपनी मूर्छा को गिरा दिया है। व्यक्ति मूर्च्छित है, बेहोश है, तभी तो जड़ में चेतन व चेतन में जड़ को आरोपित कर रहा है। आत्म की अनुभूति भी शरीर-भाव में कर रहा है। देह में यदि आत्म की प्रतीति हो, तो यह चेतना का मिथ्यात्व है। मेरे देखे, दुनिया में प्रायः सभी सोए हैं । जो चल रहा है वह भी सोया है जो बैठा है वह भी सो रहा है और जो बिस्तर पर है वह भी सोया है, पर मनुष्य को इस सत्य का बोध नहीं है कि मैं सोया हूँ इसलिए जागने की कोशिश से पहले यह अहसास करने का प्रयास करो कि मैं सच में सोया हूँ। जब व्यक्ति जानलेगा कि मैं सोया हँ, तो जागने की प्रक्रिया स्वतः प्रारम्भ हो जाएगी। प्राय: नींद में हमें यह ज्ञात नहीं रहता कि 112 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003872
Book TitleDhyan Yog Vidhi aur Vachan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy