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का मर्म समझ में नहीं आया है, अभी तो हम साँसों को पकड़ने का अभ्यास कर रहे हैं। यह एक माला पूरी हुई। पहली माला में लम्बी साँस लें, तो दूसरी माला में श्वास की गति को मन्द करते हुए लम्बे श्वास ले रहे हैं और लम्बे-लम्बे मन्द श्वास छोड़ रहे हैं। सामान्य तौर पर हम एक मिनिट में पंद्रह श्वास लेते हैं, लेकिन लम्बे गहरे दस श्वास लिए जाते हैं और मन्दगति के लम्बे-गहरे श्वास छः-सात ही लिए जाते हैं। एक माला अब मन्द गति के श्वास-प्रश्वास की करें । यह थोड़ा कठिन होगा, लेकिन महावीर ने कहा- जब तुम ध्यान करो तो मन्द-मन्द श्वासोश्वास पर मन को साधो । साधना से पहले मन्द-मन्द श्वासप्रश्वास करें। हम श्वास को जान रहे हैं, उसी का प्रत्यक्ष अनुभव कर रहे हैं । श्वास को जानने का ही प्रयास और पुरुषार्थ कर रहे हैं। तीसरी माला में आतीजाती सहज साँसों की अनुपश्यना करें। अब प्रयास मिट गया है, हाथ में केवल माला का मणिया चल रहा है और श्वासों की अनुपश्यना हो रही है। दस दिन बीस मिनिट तक ये तीन माला श्वास की साध लीजिए और दस दिन बाद इस माला का त्याग कर दीजिए और लम्बी, मन्द और सहज श्वास धाराओं पर स्वयं को जगाएँ, इनकी अनुपश्यना करें। ___श्वासों पर जागृति आपके कायिक लोक पर भी जागृति पैदा करेगी। श्वासों के प्रति जैसे-जैसे जागरूकता सधती है, वैसे-वैसे हमारे काया के लोक में जो-जो उपद्रव उदय में आएँगे, हम उनको पकड़ने में, जानने में, समझने में, उनकी प्रकृति के साक्षी होने में सफल होते जाएँगे। साधक जानता है कि कब श्वास लम्बी चल रही है, कब मन्द है, कब सहज है और कब नहीं चल रही है। ऐसी स्थिति भी बनती है, जब साँस ओछी चलती है अर्थात् श्वास इतनी धीमी
और मन्द चलती है कि पता नहीं चलता कि श्वास चल भी रही है— इसे कहते हैं श्वास का प्रश्रब्ध होना, शान्त होना । जब श्वास इतनी शान्त हो जाएगी तो हमारी काया भी शान्त हो जाती है। पहले चरण में श्वासों के प्रति जागना है और श्वासों को जानते हुए काया के प्रति संवेदनशील होना है। तब वह सिर से लेकर पाँव तक प्रत्येक अंग की अनुपश्यना करने लगता है और तत्वतः अपनी काया को समझने लगता है। जीवन का सारा मर्म और रहस्य इस साढ़े तीन हाथ की काया में समाहित है।
__ ध्यान के अन्य सभी मार्ग हमें अदृश्य से जोड़ने की प्रेरणा देते हैं, पर अनुपश्यना का मार्ग हमें हमारे भीतर वर्तमान क्षण में, क्षण-क्षण में जो-जो 68
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