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________________ प्रवेश भगवान बुद्ध ने जीवन के सत्य को समझने के उपरान्त मध्यम मार्ग की स्थापना की। उन्होंने जितना उग्र तप किया शायद ही किसी अन्य ने उतना शरीर को सुखा देने वाला तप किया हो । लेकिन इतनी तपस्या करके भी उन्होंने जाना कि वे उस सत्य से साक्षात्कार नहीं कर सके हैं, जिसके लिए उन्होंने राजमहल और सांसारिक वैभव का त्याग किया था। सूखकर काँटा हो चुके अशक्त शरीर वाले सिद्धार्थ ने जैसे ही उग्र तप का आलम्बन छोड़ा, उन्होंने तन-मन की शांति में वह पा लिया, जिसकी खोज में वे निकले थे। उनके भीतर बुद्धत्व का कमल खिल गया, बुद्धत्व के प्रकाश से उनका तन-मन भीग गया। पूज्य श्री चन्द्रप्रभजी ने उस सत्य के साक्षात्कार से नज़रें मिलाई हैं और बुद्धत्व के कमल का अपने भीतर आनन्द लिया है। वे उस आनन्द को साधकों के साथ बाँटते हैं। संबोधि-साधना-शिविर में साधकों से मुखातिब होते हुए उन्होंने भगवान बुद्ध की विशिष्ट साधना-पद्धति 'विपश्यना' पर कुछ आध्यात्मिक संवाद किए हैं। ये संवाद प्रस्तुत पुस्तक में बहुत ही आत्मीय ढंग से व्यक्त किए गए हैं। इनमें अवगाहन करते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो हम उस शिविर के ही एक अंग हैं। एक-एक शब्द अनुभव से निःसृत होता हुआ हमारे भीतर उतरता है। इन संवादों को पाकर आप निश्चय ही धन्य और आनंदविभोर हो उठेंगे। 15 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003871
Book TitleVipashyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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