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हो, पूँछ डुबाती हो और बाहर आकर झटक देती हो, आखिर तुम ऐसा क्यों कर रही हो ?
गिलहरी ने कहा- महात्मन्, बात यह है कि ये झील बहुत दुष्ट है। गौतम बोले- दुष्ट कैसे ?
गिलहरी ने कहा- इस रूप में दुष्ट है कि दो दिन पूर्व इसने मेरे अंडों को अपने पानी के बहाव में बहा डाला। वे अंडे फूट गए और मेरे बच्चे मर गए। यह वह झील है, जिसने मेरे बच्चों की हत्या की है, मैं इस झील को सुखा डालूँगी।
उन्होंने पूछा- कैसे सुखाएगी?
मैंने निर्णय कर लिया है कि इस झील में पूँछ डुबाऊँगी और बाहर आकर पानी के छींटे गिराऊँगी, गिलहरी ने बताया । गौतम मुस्कुराए और बोले- यह तो ठीक है, लेकिन झील इतनी बड़ी है और तुम्हारी पूँछ इतनी छोटी है, बिना बर्तनों के तुम इस झील को कैसे खाली कर सकोगी ? जरा सोचो, इस झील को खाली करने में तुम्हें कितने जन्म लग जाएँगे।
गिलहरी ने कहा- महत्वपूर्ण यह नहीं है कि इस झील को खाली करने में कितने जन्म लगेंगे, महत्वपूर्ण यह है कि मैं इस झील को खाली करके ही रहूँगी, इसके लिए भले ही मुझे सौ जन्म क्यों न लेने पड़े। जब तक मेरे शरीर में प्राण हैं, इस झील को सुखाने का प्रयत्न करती रहूँगी।
बुद्ध मुस्कुराए और गिलहरी को धन्यवाद देते हुए कहा- बहन, तुम्हें बहुत-बहुत साधुवाद है, क्योंकि तुमने मेरी भटकती हुई चेतना को रास्ता दिखाया है। मैं तो ठंडा हो चुका था कि अब कुछ होने वाला नहीं है, लेकिन तुमने मेरी ठंडी हो चुकी चेतना को फिर से जगा दिया है।
कहते हैं तब बुद्ध पुनः कंदराओं की ओर मुड़ गए और दुगुने उत्साह से साधनारत हो गए।
महावीर और बुद्ध के ऐसे ही कोई गुरु बन जाते हैं, जो उन्हें प्रेरणा दे जाते हैं। केवल हम ही नहीं बुद्ध, महावीर, राम भी अपने पथ से भटक सकते हैं, तब इसी तरह कोई गिलहरी, कोई साँड, कोई अन्य उनके पथ-प्रदर्शक बन जाते हैं। हम नहीं जानते जीवन में कब कौन गुरु बन जाता है और गुरुत्व की भूमिका अदा
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