SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 50
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ कि हमारे भीतर वास्तविक रूप से बुद्धत्व का कमल, सम्यक् ज्ञान, सम्यक् दृष्टि का कमल खिल सके। जिनके भीतर अपने कल्याण की कामना है, वे बुद्धत्व के इस मार्ग पर आएँ। जो अपने भीतर के दुःख और दौर्मनस्य का नाश करना चाहते हैं, वे लोग इस पवित्र मार्ग पर अपने क़दम बढ़ाएँ । जिन्हें वास्तव में अपने सत्य से साक्षात्कार करने की चाहत है, वे इस पथ पर प्रगति करें । जो हक़ीक़त में महापरिनिर्वाण का स्वाद चखना चाहते हैं, निर्वाण और मोक्ष को उपलब्ध करना चाहते हैं, उनके लिए बुद्ध और महावीर का यह मार्ग निश्चित ही कल्याणकारी हो सकता है । यह मार्ग उनके लिए है, जो इस पर चलकर परिणाम प्राप्त करना चाहते हैं । जो व्यक्ति दिन-रात, सच-झूठ करके धनार्जन करता है, उसके लिए महावीर के मोक्ष मार्ग की कोई उपयोगिता नहीं है । वह व्यक्ति जो पाप और व्यभिचार के दलदल में गड़ा हुआ है, ऐसा व्यक्ति राम के मार्ग को अपने जीवन में कैसे जी सकेगा। जीना तो हम बुद्ध की शांति और करुणा के मार्ग को चाहते हैं, लेकिन एक कसाई बुद्ध के मार्ग को समझकर भी क्या कर लेगा। एक भोगी भोग के रास्ते योग के द्वार कैसे खोल सकेगा । व्यक्ति के भीतर जब तक अध्यात्म की गहन पिपासा न होगी, चाहत न होगी, तब तक व्यक्ति उसे समझ तो सकता है, बोल भी सकता है, पर जी नहीं सकता, अपने जीवन का हिस्सा नहीं बना सकता । 1 जीवन में कुछ मार्ग वास्तविक रूप से इंसान के कल्याण से, आध्यात्मिक कल्याण से जुड़े होते हैं । ये कोई ऐसे मार्ग नहीं हैं, जो स्वर्ग दे दें या नर्क से बचा लें। सच पूछो तो स्वर्ग और नर्क प्रतीकात्मक हैं, बाकी इन्हें किसने देखा है । पाताल के नर्क और आकाश के स्वर्ग, ये सब बड़े रहस्यमयी हैं । कितनी विचित्र बात है, जिस स्वर्ग को हमने देखा नहीं, उसे पाना चाहते हैं और इसी तरह जिस नर्क को देखा नहीं, उससे बचना चाहते हैं । जहाँ तक मेरा ख्याल है, स्वर्ग और नर्क किसी भौगोलिक व्यवस्था के अन्तर्गत नहीं हैं । मेरी दृष्टि में तो ये दोनों आँखों की तरह हैं, जिसमें एक में आँसू और दूसरी में खुशियाँ होती हैं। जैसे कि दो हाथ और दो पाँव जिसमें एक पाँव और हाथ में निकम्मापन समाया रहता है, दूसरे पाँव और हाथ में कर्मयोग और सफलता के गुर छिपे रहते हैं । स्वर्ग और नर्क हमारी ही परिणतियाँ हैं, अगर आज क्रोध किया तो नर्क में गए और प्रेम किया तो स्वर्ग में रहेंगे। स्वर्ग और नर्क एक सिक्के के दो पहलू हैं, जो साथसाथ चलते हैं। धर्म की इस भाषा को बदलना चाहिए कि क्रोध करने से नर्क में 49 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003871
Book TitleVipashyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy