________________ पूज्य श्री चन्द्रप्रभ ने सत्य के साक्षात्कार से नज़रें मिलाई हैं और बुद्धत्व के कमल का अपने भीतर आनन्द लिया है। वे उस आनन्द को साधकों के साथ बाँटते हैं। संबोधि-साधना-शिविर में साधकों से मुखातिब होते हुए उन्होंने भगवान बुद्ध की विशिष्ट साधना-पद्धति 'विपश्यना' पर कुछ आध्यात्मिक संवाद किए हैं। ये संवाद प्रस्तुत पुस्तक में बहुत ही आत्मीय ढंग से व्यक्त किए गए हैं। इनमें अवगाहन करते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो हम शिविर के ही एक अंग हैं। एक-एक शब्द अनुभव से निःसृत होता हुआ हमारे भीतर उतरता है। इन संवादों को पाकर आप निश्चय ही धन्य और आनंदविभोर हो उठेंगे। इस पुस्तक का प्रत्येक शब्द, प्रत्येक विचार अपने-आप में विलक्षण एवं अद्भुत है ।आप पुस्तक के हर शब्द के साथ लहरों की तरह बहते जाएँ, आपकी जीवन-नौका अपने-आप पार लगतीजाएगी। Gheविपश्यना Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org