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________________ क्या पता अंतिम घड़ी में ही प्रभु से मिलन हो जाए । तो हे कौए, तुम सब खा लेना पर इन दो आँखों को छोड़ देना । प्रभु मिल जाएँगे तो मेरा यह बलिदान भी सार्थक हो जाएगा। ऐसी स्थिति उसी व्यक्ति के जीवन में घटित हो सकती है जिसने अपनी काया की प्रकृति को समझा, उसके गुण-धर्मों को जाना, काया की नश्वरता को जाना और अन्ततः वे काया से मुक्त हुए। देह में रहते हुए भी जो देहातीत रहते हैं वे ही सच्चे साधक और आत्मज्ञानी कहलाते हैं । फरीद जैसे लोग देह में रहते हुए भी विदेह-स्थिति को स्पर्श कर गए तभी वे कौओं के द्वारा अपनी देह को चिथड़े-चिथड़े करवाने को तैयार हो गए। इसी तरह गजसुकुमाल भी संकल्प लेकर श्मशान में खड़े हो गए कि किसी भी स्थिति-परिस्थिति में विचलित नहीं होंगे। जब गजसुकुमाल ने भगवान से इस प्रकार की अनुमति माँगी तो भगवान ने कहा था- गजसुकुमाल ! आज की रात तेरे जीवन की कसौटी की रात है। अगर आज रात तुम सफल हो गए तो कल का प्रभात तुम्हारे जीवन के समस्त अंधकारों को दूर कर देगा। मुनि गजसुकुमाल ने कहा- प्रभु मैं आपका शिष्य हूँ और अब चाहे जैसी परिस्थिति बन जाए मैं विचलित नहीं होऊँगा। दुनिया में दुश्मनों की कमी नहीं है। गजसुकुमाल के सिर पर मिट्टी की पाल बाँध दी जाती है। श्मशान में और क्या मिलेगा, सो वहाँ से जलते हुए अंगारे उठाए और सिर पर पाल में रख दिए । सोचें वह रात कैसी बीती होगी। हमारे सामने अगर मच्छर आ जाए या चींटी काटने लगे तो हम विचलित हो जाते हैं। काटने की पीड़ा बर्दाश्त ही न होगी, तुरन्त मच्छर को उड़ाएँगे और चींटी को हटाएँगे। पर वे रात भर जलते हए अंगारों को बर्दाश्त करते रहे। खोपड़ी धक्-धक्कर जलने लगी, धीरे-धीरे पूरा शरीर जलने लगा। रातभर गीदड़, सियार, भालू उनकी देह को नोचने लगे क्योंकि वे तो शव के समान खड़े हुए थे। सिर पर अंगीठी जल रही थी, पाँवों को पशु नोच रहे थे पर वह अमर आत्मा, काया के उपद्रवों को अंतिम श्रेणी तक बर्दाश्त करते रहे। वह तब तक खड़े रहे जब तक हड्डियों का ढाँचा अपने आप न गिर गया। काया के उपद्रवों को अंतिम श्रेणी तक सहन करना, सहनशीलता की, सामायिक की पराकाष्ठा है। काया को तो एक-न-एक दिन गिरना ही है यह तो मरणधर्मा है, पर इस 126 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003871
Book TitleVipashyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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