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________________ गुप्तांगों की अनुपश्यना करनी चाहिए या नहीं ? तो आप जानते हैं गुप्तांगों में हर समय तो विकार नहीं रहा करता । यह तो कभी जब उसमें विकारों की प्रगाढ़ता होती है, तब पता चलता है। हर समय अशुद्ध वेदनाएँ ही नहीं होतीं शरीर में शुद्ध वेदनाएँ भी होती हैं। मैंने पहले ही कह दिया है कि गुप्तांगों की अनुपश्यना करना ठीक नहीं है, फिर भी अगर हो जाती है, अगर वहाँ ध्यान चला ही जाता है, वह आकर्षित कर ही लेता है तब उसे केवल एक अंग मानकर अनुपश्यना करें । देह के अन्य अंगों की तरह वह भी एक अंग ही है। उसकी लहर में बह न जाएँ। कभी ऐसा भी होता है जब हम अशुद्ध और शुद्ध दोनों से मुक्त हो जाते हैं, बस शुद्ध दर्शन हो रहा है, शुद्ध ज्ञान हो रहा है। वेदनानुपश्यी न कुछ ग्रहण करता है और न ही किसी को न ग्रहण करने योग्य समझता है। वह अपना सहज जीवन जीता है। संसार में विहार करता है, वेदनाओं के उदय-विलय को जानता है। जो कायानुपश्यना और वेदनानुपश्यना में पारंगत हो जाता है तब वह चित्तानुपश्यना की ओर बढ़ता है। चित्त के सूक्ष्म से सूक्ष्म संस्कारों का साक्षी होना शुरू होगा। पहले हम काया के स्थूल गुणधर्मों से ऊपर उठे तब चित्त के सूक्ष्म गुणधर्मों से उपरत होने में सफल हो पाएँगे। आगे हम देखेंगे कि श्री प्रभु हमारे सामने चित्तानुपश्यना के कौनसे गूढ़ द्वार खोलना चाहेंगे। हम अपनी अनुपश्यना को धीरे-धीरे और ज़्यादा गहरी करते चले जाएंगे। आज अपनी ओर से इतना ही निवेदन है। नमस्कार! 123 Sain Education international Jain Education International For Personal Private leve ons For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003871
Book TitleVipashyana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2013
Total Pages158
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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