SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 73
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वाला व्यक्ति आग बबुला बन कर आया है। अब यह आप पर निर्भर है कि आप किस रूप में हैं । उदाहरण के तौर पर हम समझ सकते हैं कि हमारे दो हाथों में दो पात्र हैं। एक पात्र में पानी है और एक में पेट्रोल । सामने वाला व्यक्ति दियासलाई जलाकर आपके सामने लाया है अगर आपने पानी का पात्र आगे बढ़ा दिया तो दियासलाई उसमें गिर कर बुझ जाएगी, पानी-पानी हो जायेगी और अगर भूल से तुमने पेट्रोल का पात्र आगे बढ़ा दिया तो वह दियासलाई भयंकर आग का रूप बन जाएगी। यह हम पर निर्भर करता है कि हम पानी हैं या पेट्रोल । डीजल हैं या दूध । मैंने सुना है एक व्यक्ति बीच बाजार में जलती हुई लकड़ी हाथ में थामें चले जा रहा था। चिल्ला रहा था मैं जाऊँगा और इस जलती हुई लकड़ी से तालाब में आग लगा दूँगा । लोग समझ गए यह गुस्से में है इसलिए ऐसा कह रहा है । पर इसे विवेक नहीं है कि तालाब में आग लगने की बजाय इसकी लकड़ी ही तालाब में जाकर बुझ जायेगी। अगर हम स्वयं को शांत सरोवर बना लेते हैं तो दुनिया का कोई भी अंगारा किसी सरोवर में आग नहीं लगा सकता है । क्रोध का ज़वाब दें मुस्कान से 'कोई हमारे प्रति गलत व्यवहार करे, हमारी उपेक्षा भी करे तो भी हम उसे मजाक में लेने की कोशिश करें। कहीं ऐसा न हो कि हमारे स्वभाव का स्वीच किसी दूसरे के हाथ में हो वह हमें जब चाहे तब शांत भी कर दे और क्रोधित भी कर दे । एक प्यारे संत हुए हैं- भीखण जी । कहते हैं एक बार वे कुछ भक्तों के बीच बैठ कर प्रवचन दे रहे थे। इसी दौरान एक युवक आया और संत के सिर पर ठोले मारने लगा। भक्तों को यह बर्दाश्त न हुआ । उन्होंने युवक को पकड़ लिया और उसकी पिटाई करने लगे। संत ने बीच में हस्तक्षेप करते हुए कहा, 'इसे मारो मत शायद यह मुझे अपने गुरु बनाने आया है । ' लोगों ने कहा, 'गुरु बनाने का यह कौनसा तरीका है। चोटी खिंचवा कर तो चेले बनाए जाते हैं पर यह ठोला मार कर गुरु बनाने का कौनसा तरीका।' संत ने मुस्कराते हुए कहा, 'निश्चित ही यह व्यक्ति मुझे Jain Education International 72 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy