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________________ दिमाग के कारण खाता है। अस्वस्थ या असंतुलित दिमाग़ आदमी की सबसे बड़ी बीमारी है। प्रकृति ने हमें प्रज्ञा-शक्ति, ज्ञान-शक्ति मस्तिष्क के रूप में प्रदान की हैं लेकिन कभी-कभी छोटी-सी चर्चा, छोटी-सी बात, छोटी-सी घटना या छोटा-सा अवसाद मनुष्य के भीतर उस घुन का काम करता है जो भीतर ही भीतर गेहूँ को खाकर समाप्त कर देता है। यह अवसाद, बेचैनी, घुटन, तनाव उस दीमक का काम करते हैं जिससे कि मनुष्य भीतर-ही-भीतर समाप्त हो जाता है। बाहर से अखंड दिखाई देने वाला शरीर अंदर से खंड-खंड हो जाता है। यह रोग कभी भी लग सकता है। बचपन, युवावस्था, प्रौढ़ावस्था या वृद्धावस्था में। बुढ़ापे में अगर यह रोग लग गया तो इससे निजात पाना और भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि तनावग्रस्त बूढ़ा व्यक्ति अनेक प्रकार की शारीरिक बीमारियों से भी ग्रस्त हो जाता है। आज तनावरहित जीवन की कल्पना करना व्यर्थ है। तनाव ने हमें शांति से जीवन जीना भुला दिया है और हमारे जीवन के भावात्मक जुड़ाव को समाप्त प्रायः कर दिया है। अखूट ऐश्वर्य एवं वैभव की चाह तथा रातों-रात करोड़पति बनने की चाहत लोगों में तनाव और अवसाद पैदा कर रही है। हमारी आधुनिक जीवनशैली हमें कछ घंटे या कछ दिन तो सुख देती है, पर उससे जीवन में अनियमितताएं एवं विसंगतियाँ ही पैदा हो रही हैं। अनियमित जीवन-शैली के कारण लोग शारीरिक बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं, उसी से मानसिक बीमारियाँ भी बढ़ी हैं और मनोरोग विश्वव्यापी समस्या बनता जा रहा है। हर तीसरे घर में तनाव और अवसाद ने अपनी जगह बना ली है। रोग-शोक का मूल : तनाव कोई व्यक्ति कितना भी सम्पन्न क्यों न हो, उसने भले ही शरीर पर आभूषण पहन रखें हों पर यदि थोड़ा-सा भी तनाव उसके अन्तर्मन में पल रहा हो तो उसका चेहरा अप्रसन्न ही नजर आता है। दुनिया का कोई भी व्यक्ति जो आत्महत्या करता है, उसका मूल कारण शारीरिक या पारिवारिक दुःख नहीं होता बल्कि व्यक्ति किन्हीं कारणों से स्वयं ही मानसिक रूप से 11 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
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