SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 107
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ थर-थर काँप रहे थे कि पता नहीं जीसस हमें क्या दुराशीष देंगे लेकिन जीसस ने एक पात्र में दूध और जल मंगवाया और उन दोनों शिष्यों को एक चौकी पर बिठाकर उस जल से उनके पाँवों का प्रक्षालन किया ताकि उनके स्वयं के मन में भी उन दोनों के प्रति किसी भी प्रकार की दुर्भावना न रह जाए । उनके अंदर इतनी सहनशीलता थी कि उन्होंने वह पात्र उठाया, दोनों गुरुद्रोही शिष्यों के पाँव धोये और उन्हें अपने बालों से पोंछा। फिर कहा – 'हे प्रभु, तू इन्हें माफ करना क्योंकि ये नहीं जानते हैं कि ये क्या कर रहें हैं ?' जिसके भीतर इतनी सहनशीलता होती है वह प्रतिशोध और वैर का जवाब प्रेम से देता है, काँटो का जवाब फूलों से देता है। हम अपने जीवन में उस सहनशीलता का विकास करें कि अगर कोई हमारे प्रति अन्याय करे तो भी हम अपने अन्तर्मन में न्याय की भावना ही रखें। दुश्मन के प्रति भी दोस्ती का भाव रखना ही सहनशीलता का विकास है। प्रतिशोध मिटाने का दूसरा तरीका है -क्षमा का विकास। जब भी विपरीत स्थितियाँ और वातावरण निर्मित हो तब उनके प्रति अपने अन्तर्मन में क्षमा और प्रेम को जन्म दें। महावीर के कान में कीलें ठोकी गईं तो उन्होंने क्षमा को धारण किया। आपके कान में कड़वे शब्द पड़ें तो आप भी क्षमाशील बने। एक संत के जीवन में अगर कषाय जगता है तो वह उसे साँप बनाता है और अगर साँप के जीवन में क्षमा जगती है तो वह उसे देव बना देती है। यही क्षमा, अहिंसा और प्रेम जीवन जीने की कला है। क्षमा-प्रेम का स्वाद अनुपम वैर-विरोध और प्रतिशोध उसी को अच्छे लगते हैं जिसने अभी तक प्रेम और क्षमा का स्वाद नहीं चखा है। दुनिया में दो कठिन कार्य हैंकिसी से क्षमा मांगना या किसी को क्षमा करना। परन्तु ये दोनों ही कार्य आपको अनेक कठिनाईयों से मुक्ति दिलाते हैं । शुरू-शुरू में माफी मांगना हमें जहर पीने के समान लगता है परन्तु परिणाम में अमृत हो जाता है। क्षमा मांगना यदि प्रायश्चित का सुंदर व अच्छा रूप है तो क्षमा करना बड़प्पन का प्रतीक। इसमें आप न केवल मन की उलझन से मुक्त होंगे अपितु अपनी शक्ति और शांति में बढ़ोतरी करने में भी सफल हो जाएंगे। जब कोई व्यक्ति आपके प्रति गलती या अपराध कर देता है तो आपके मन में जलन या प्रतिशोध की भावना पैदा होती है। परिणामस्वरूप 106 For Personal & Private Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.003870
Book TitleChinta Krodh aur Tanav Mukti ke Saral Upay
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2012
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size22 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy