SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 90
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ समर्पण की सुवास तो तुम फल तक कभी न पहुँच पाओगे। मानो तो प्रमाण स्वत: मिलते हैं, न मानो तो कहीं कोई प्रमाण नहीं है। यदि तर्क पर ही अधिक विश्वास करते हो, तो क्या यह प्रमाण कम है कि तुम्हारे भीतर प्यास है! प्यास ही प्रमाण है। प्यास है तो पानी जरूर होगा। दोनों अन्योन्याश्रित हैं। यदि पानी न होता, तो प्यास क्यों उठती? यदि भोजन न होता, तो भूख क्यों लगती ? यदि भूख है, तो भोजन है। यदि परमात्मा की अभीप्सा है, तो परमात्मा भी होगा। नहीं तो यह अभीप्सा कैसे होती? बुद्धि पहले प्रमाण चाहेगी, फिर अनुभव को आत्मसात् करना चाहेगी, जबकि श्रद्धा पहले अनुभव को अपने में उतरने देगी। वास्तव में जब अनुभव हो गया, तो प्रमाण की तलाश ही समाप्त हो जाती है। श्रद्धा और प्रेम के मार्ग में अनुभव ही प्रमाण है। ___ इसलिए जो हार्दिक है, वह परमात्मा के करीब है और जो तार्किक है. वह परमात्मा से दूर है। कारण, परमात्मा को पाने का मार्ग बुद्धि नहीं, हृदय है। हृदय की नौका के सहारे ही उस तक पहुँचा जा सकता है। अगर श्रद्धा सही है, तो वह राख में भी अंगारों को ढूँढ़ लेगी। चाहे परमात्मा हो, चाहे निर्वाणधाम, वहाँ न तर्क काम आते हैं, और न शब्द तथा स्वर। तर्क-वितर्क और सारे स्वर-व्यंजन वहाँ से वापस लौट आते हैं। वहाँ तो काम आती है सिर्फ उसकी स्मृति। कबीर और आनंदघन के शब्दों में उसकी सुरति', 'वहाँ' की याद। यदि हर चीज में परमात्मा को देखने की दृष्टि प्राप्त हो जाए, तो किसी काबा या कैलास-यात्रा की जरूरत न होगी। परमात्मा की मूरत तो तुम्हें तुम्हारे इर्द-गिर्द मिल जाएगी। पत्ती-पत्ती पर वेद और आगम लिखे दिखाई देंगे। पक्षियों की आवाज में भी ऋचाएँ सुनाई देंगी। फिर झरनों का कलरव कोरा कलरव नहीं रहेगा। कुरान की आयतें उनमें भी ध्वनित होती लगेंगी। जीवन में भी वह उसी को ढूँढ़ेगा और मृत्यु में भी वह उसी को देखेगा। औरंगजेब ने एक सूफी फकीर को मौत का फतवा सुनाया था। वह फकीर था मोहम्मद सैय्यद। सूली की सीढ़ियों पर चढ़ते वक्त सैय्यद ने कहा – 'तू किसी भी शक्ल में क्यों न आए, तू मुझे छल न सकेगा। मेरे दोस्त ! अब तक तू जीवन के रूप में आया, आज तू सूली की शक्ल में आया है। मैं सूली में भी तुम्हें ही देख रहा हूँ। इसलिए यह सूली मेरा अहोभाग्य है, क्योंकि तुमसे मिलने में अब तक जो सबसे बड़ी बाधा थी इस देह की, वह बाधा गिर जाएगी और मिलन शाश्वत हो जाएगा।' सारे जहाँ में परमात्मा को देखने का अर्थ यही है कि सर्वत्र परमात्मा की प्रतीति हो, चाहे वह सूली ही क्यों न हो ? जब परमात्मा भक्त की दृष्टि बन जाते हैं, Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy