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अन्तर के पट खोल
न हैरान हो देख, मैं क्या देख रहा हूँ।
बंदे तेरी सूरत में, खुदा देख रहा हूँ। वह जहाँ भी देखेगा, उसे सिर्फ वही दिखेगा। प्रेम का पथ ही ऐसा है जहाँ व्यक्ति स्वयं को भूल जाता है और अपने प्रेमी में अपनी समग्रता ढूँढता है। मरने के बाद तो हर कोई अपने आपको परमात्मा पर छोड़ देता है, पर असली भक्त और प्रेमी तो वह है, जो जीवन को भी अपने साध्य-आराध्य के प्रति समर्पित कर देता है। जो अपना 'सर्व' छोड़ता है, वह उसका 'सर्व' पाता है। मीरा ने सब छोड़ा, तो सब पाया। मीरा चली गई, पर मरी नहीं। इतिहास में जितने सम्राट हुए हैं, उन्हें बिसराया जा सकेगा, पर मीरा को जनमानस से कभी नहीं निकाला जा सकेगा। मीरा भक्ति की पर्याय है। मीरा भक्ति की पराकाष्ठा है, भक्त होने का आदर्श है। सब-कुछ न्योछावर करते ही क्रान्ति है। जो बचाता है, वह परमात्मा पर अपना अविश्वास व्यक्त करता है।
___ जो मीरा रानी थी, वही मीरा दीवानी कहलाई। राजपाट छोड़ा। मकान-महल छोड़े, सुख-वैभव त्यागा और चली गई वृंदावन - मथुरा की गलियों में। नश्वर को जितना त्यागा, अनश्वर उतना ही आत्मसात् हुआ। जो नश्वर के पीछे दौड़ रहे हैं, वे अनश्वर से वंचित रहते हैं। भौतिकता में उलझा हुआ व्यक्ति भगवान को कब पा सका है! लूका ने कहा था, 'उन पादरियों से सावधान रहो, जिन्हें लंबे-लंबे चोगे पहने हए घूमना भाता है, जिन्हें बाजारों में नमस्कार और सभाओं तथा जीमनवारी में मुख्य स्थान अच्छे लगते हैं। जो दिखावे भर के लिए घंटों प्रार्थना करते हैं, वे कड़ा दंड भोगेंगे।' लूका की यह बात क्या सभी पर लागू नहीं होती?
दुनिया में दो तरह के भक्त हैं - एक खरबूजे जैसे, और दूसरे संतरे जैसे। हर समय, हर स्थान एवं हर परिस्थिति में समान रूप से भक्ति करने वाले खरबूजे की तरह हैं। बाहर-भीतर से भिन्न रूप वाले और मौके-मौके पर भक्ति का आलाप देने वाले लोग संतरे जैसे हैं। ऐसे लोग भक्ति के तो करीब दिख जाते हैं, पर भगवान् के करीब कभी नहीं हो पाते। इसलिए जब परमात्मा के प्रति समर्पण हो और उसे पाना ही जीवन का लक्ष्य बनता हो, तो हमारी श्रद्धा के मंदिर में सिर्फ परमात्मा की ज्योति ही जगमगानी चाहिए।
श्रद्धा का संबंध तो हृदय से है। यदि हृदय के साथ हम बुद्धि को लाकर बैठाएँगे, तो पहले कदम पर ही मात खा जाएंगे क्योंकि हृदय श्रद्धा देता है और बुद्धि तर्क। श्रद्धा तो खेत में बीज बोने जैसी है। बीजों को बोओगे, उन्हें सींचोगे, तभी तो बालियाँ निकलेंगी। यदि बुद्धि की ही मानते रहे, तो बीज कभी बाली नहीं बन पाएगा। बुद्धि तो तब मानती है, जब उसे प्रमाण मिलता है। श्रद्धा कहती है कि सींचोगे तो फल मिलेगा। यदि फल को देखने के बाद बीज बोने का सपना देखोगे,
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