________________
42
अन्तर के पट खोल
संभव है, किसी की नजरों में परमाणु का कोई मूल्य न हो, परंतु एक परमाणु में हिरोशिमा की भाग्य-रेखा खींची हो सकती है। सागर को एक बूंद में चखा जा सकता है। परमात्मा विराट् है, हम बूंद हैं। जो बूंद को चख लेता है, सागर उससे छिपा नहीं रह पाता।
__ हम सघन ऊर्जा के धारक हैं। आत्म-ऊर्जा की सशक्तता को चुनौती नहीं दी जा सकती। उससे प्यार किया जा सकता है, उसमें निमग्न होकर स्वयं को विराट किया जा सकता है। दूसरों से प्यार खूब हुआ, चुम्मा-चुम्मा भी खूब गाया-किया, पर हर बार प्यार प्रवंचना बना। वह व्यक्ति महा मानव' है, जो स्वयं से प्यार करता है। स्वयं से प्यार करने वाला कभी किसी के प्रति वैमनस्य नहीं रख सकता। परंतु 'पर' से ही प्रेम का संबंध जोड़ने वाला कदम-दर-कदम विषाणुओं से घिरा है। महत्त्व आत्म-प्रेम और हृदय-प्रेम का है।
कृपया स्वयं से भी जुड़ें और आत्म-घनत्व को मूल्य दें। मनुष्य बीज रूप है। बीज यदि बीज ही बना रहे, तो उसके अस्तित्व का आत्म-विचार कहाँ हो पाएगा। बीज में बरगद की विराट संभावनाएँ हैं। खेद है वह अपनी इस ओजस्विता से अपरिचित है। जिस दिन उसे अहसास होगा स्वयं की अंतर्गर्भित संभावना का, वह परमात्मा की कृषि-धरा को समर्पित कर देगा खुद को, ताकि अपने आपको हराभरा कर सके, बाँहों को बुलंद आत्मविश्वास के साथ फैलाकर स्वयं की ऊर्जस्विता और जीवंतता को उद्घाटित कर सके।
बीज में अनंत का आलिंगन भरती संभावनाएँ जरूर हैं, पर वह अपनी संभावना को शायद देख नहीं पाता। मनुष्य भी बीज रूप है, परंतु वह अपने भीतर झाँक सकता है। अंतर्घट में सतत झाँकना स्वयं की अनखिली संभावनाओं का निरीक्षण है। भीतर की ओर देखना ही तो आत्मस्वरूप से साक्षात्कार की पहल है। जिज्ञासापूर्वक भीतर मुड़ना ही ध्यान है, उसमें दिल भर डूब जाना ही योग है।
मेरे पाँव हिमालय की तराई पर हैं और दृष्टि पर्वताधिराज के अष्टपद से मंडित कैलास पर। खिंचे-खिंचे आप मुझ तक आ गए हैं। कई परिचित हैं, कई अपरिचित। क्या आप तैयार हैं अंतर्-ॉकन के लिए? आश्वस्त रहें, मैं सहयोग करूँगा, अंतर्घट में झाँकें, चूंकि हम भीतर झाँक सकते हैं। बीज स्वयं का अंत:करण झाँक नहीं पाता, इसलिए जीवन-दर्शन की अधिक उज्ज्वल संभावनाएँ हमसे ही जुड़ी हैं। स्वयं के प्रति स्वयं की चेतना को और संवेदनशील बनाएँ। धन्यवाद है उस बीज को, जो आत्म-स्थिति से बेखबर होते हुए भी स्वयं के आँगन में आकाश उतार लेता है। वह मनुष्य नासमझ है, जो सक्षम होते हुए भी खुद की सक्षमता से कोई सरोकार नहीं रखता।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org