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________________ अन्तर् के पट खोल तक वे उसमें रह लेते हैं। वे वास्तव में जान लेते हैं कि जीवन का रहस्य क्या है। __ जीवन का असली रहस्य आत्म-ऊर्जा है। श्वास आत्म-ऊर्जा की अभिव्यक्ति है। श्वास को आत्मा से ही ऊर्जा मिलती है। आत्म-ऊर्जा के बारे में आम आदमी बेखबर है। हाँ, वह इतना जरूर जानता है कि शरीर में कोई-न-कोई ऐसी ऊर्जा या शक्ति अवश्य है, जिसके कारण शरीर है और जिसके निकल जाने के बाद शरीर माटी की ढेरी। श्वास का रुकना जीवन का वियोग नहीं है, किंतु आत्म-वियोग होने पर श्वास-निरोध अवश्यंभावी है। ____ माँ के गर्भ में हम मात्र अणु थे, उससे पूर्व एक अदृश्य आत्मा। आत्मा अणु में वैसे ही प्रविष्ट हुई जैसे कमरे में हवा। धीरे-धीरे शरीर बना, इंद्रियाँ बनीं, जन्म हुआ, बड़े हुए। हम जीवन के जन्म के बारे में अपनी अंतर्दृष्टि जगा। जन्म की ओर लौटें। प्रतिक्रमण करें। ‘प्रतिक्रमण' अर्थात् जीवन के अतीत को झांकना। यदि पीछे लौटें तो पाएँगे कि अति सूक्ष्म में हमारी गंगोत्री है, जहाँ से प्रसारित हई है जीवन की गंगा। गंगा गंगोत्री के कारण है। यदि मूल स्रोत रूंध जाए तो पंछी उड़ जाएगा, पिंजरा यहीं पड़ा रह जाएगा। मनुष्य अपने आप में एकसृष्टि है और सृष्टा सदा अपनी सष्टि में तल्लीन रहता है। परतंत्र वह इसलिए है, क्योंकि उसके पास आत्म-स्वतंत्रता का कोई नारा नहीं है, जिसके तहत वह आत्म-स्वरूप की आजादी के लिए जिंदाबाद-मुर्दाबाद करे। अंतर्यात्रा के लिए अभीप्सा जिंदाबाद है, शेष तो मुर्दाबाद के कंधे पर जिंदाबाद की राजनीति है। ____ मनुष्य के पास ऐसी कोई प्यास दिखाई नहीं देती, जिसके लिए वह जीवन को दाँव पर लगा सके। उसका सारा जोर शरीर के लिए है। आँख न होने पर वह भगवान् की प्रार्थना करेगा, किंतु आँख मिलने के बाद वह वेश्या का द्वार खटखटाएगा। मनुष्य की निगाहें निगाहों पर नहीं, देह पर केंद्रित हैं। वह इंसान शैतान है, जिसकी नजर माँ के दूध पर नहीं, नारी के जन्म-स्थान पर टिकी रहती है। जिस देह को मनुष्य सजा-बचाकर रखना चाहता है, वह तो रोज-ब-रोज जर्जर हुई जा रही है। देह मृत्यु का घर है। मृत्यु के क्षणों में आनंदघन के वे गीत - ‘अब चलो संग हमारे काया' – मनुष्य के लिए अनसुने-अनबूझे रहे हैं। महावीर की ध्यान-पद्धति का एक चरण है - कायोत्सर्ग। यह वास्तव में देहराग से ऊपर उठने के लिए है। काश, मनुष्य आत्म-समीकरण के लिए जीवन का कोई संपादन कर पाए। आत्म-ऊर्जा से अभिप्राय है हमारे जीवन की मौलिकता, अस्तित्व की वास्तविकता। अदृश्य या सूक्ष्म रहकर उसे नजर-अंदाज नहीं किया जा सकता। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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