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________________ ध्यान और प्रेम : जीवन के दो आनंदआनंद-सूत्र अपने ध्यान को प्रेम में विश्राम दें और अपने प्रेम को ध्यान में निमग्न होने दें। त्य के फूल जीवन के हर कदम पर खिले हुए हैं। फूल बड़े बेहतरीन हैं। उनका सौंदर्य लाजवाब है। ये फूल अदृश्य हों, ऐसी बात नहीं है। फूल दृश्य हैं। इन्हें देखने की अंतर्दृष्टि चाहिए। ध्यानपूर्वक, सजगतापूर्वक देखते रहना सत्य के फूलों को पहचानने की दूरबीन है। सत्य एक है, परंतु उसके रूप अनंत हैं। इसलिए सत्य भी अनंत है । जीवन और जीवन के परिवेश को ध्यानपूर्वक देखना और पढ़ना सत्य की गहराई को आत्मसात् करना है । सत्य प्रकाश है, किंतु सूरज या दीए की तरह नहीं । सत्य तो भ्रांतियों के अंधकार को दूर धकेलने वाली रोशनी है। वह स्वयं भी ज्योतिर्मय है । वह उसे भी ज्योतिर्मय कर देता है, जो सत्य को जीता है। स्वयं की ज्योतिर्मयता से अभिप्राय है विश्वास की अटलता, संदेह की उन्मूलनता और प्राप्त में प्रसन्नता । सत्य ज्ञान है। सत्य - प्राप्ति का मतलब है सत्य को जान लेना । स्वयं को जानना तो सत्य है ही, उनको भी जान लेना सत्य की पहल है, जिनमें सत्य की संभावना है। सत्य को सत्य रूप में जान लेना ही सत्य नहीं है, असत्य को असत्य रूप में जान लेना भी सत्य है । वास्तव में सत्य का आविष्कार तभी होता है, जब असत्य को जान लिया जाता है। सत्य को दुलत्ती तब खानी पड़ती है, जब गलत सही मान लिया जाता है और सही को गलत । गलत को सही मानना और सही को गलत मानना ही अविद्या है। सत्य शांति है। अशांति मन से हटाना ही जीवन में शांति का उदय है। अशांति Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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