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________________ एक ओंकार सत नाम 105 ॐ में बड़ा आकर्षण है। 'रसो वै सः' वह रस रूप है। परमात्मा रस रूप है। 'ॐ' उसका वाचक है। उसमें डूबो। रोम-रोम से उसी का रस पीयो। 'ॐ' ध्यान की मौलिक ध्वनि है। 'ॐ' का ध्यान हम चार चरणों में पूरा कर सकते हैं। इन चार चरणों का कुल समय तालीस मिनट होना चाहिए। पहला, दूसरा और तीसरा चरण दस-दस मिनट का है और अंतिम चरण पंद्रह मिनट का। 'ॐ' ध्यान-योग के पहले चरण में ॐ का पाठ करो। उसका लंबा उच्चारण करो अर्थात् उसका जोर से उद्घोष करो। दूसरे चरण में होठों को बंद कर लो और भीतर उसका अनुगूंज करो। जैसे भौरे की गूंज होती है, वैसी ही ॐ की गूंज करो। तीसरे चरण में मनोमन 'ॐ' का स्मरण करो। श्वास की धारा के साथ 'ॐ' को जोड़ लो। तल्लीनता इतनी हो जाए कि श्वास ही 'ॐ' बन जाए। चौथे चरण में बिल्कुल शांत बैठ जाओ। मात्र अनुभव-दशा। ॐ को, ॐ के स्वरूप को, ॐ की चेतना को स्वयं में व्याप्त हो जाने दो। पहला चरण पाठ है, दूसरा चरण जाप है, तीसरा चरण अजपा है और चौथा चरण अनाहत है। चौथे चरण में पूरी तरह शांत बैठना है, स्मृति से भी मुक्त होकर । शांति के इन क्षणों में ही अनाहत की संभावना होगी। 'ॐ' परमात्मा का ही द्योतक है। इसलिए इसमें रचो। यह महामंत्र है। सारे मंत्रों का बीज है यह। हर मंत्र किसी न किसी रूप में इसी से जुड़ा है। इसलिए ॐ मंत्रयोग की जड़ है। एक पेड़ में हजारों पत्ते हो सकते हैं, पर जड़ तो एक ही होती है। जिसने जड़ को पकड़ लिया, उसने जड़ से जुड़ी हुई हर संभावना को आत्मसात् कर लिया। 'ॐ' कालातीत है, अर्थातीत है, व्याख्यातीत है। परमात्मा भी इसी में समाया हुआ है और वह परमात्मा में समाया हुआ है। ईसाइयों का आमीन 'ॐ' ही है। जैनों ने 'ॐ' में पंच परमेष्ठि का निवास माना है। हिंदुओं ने उसे ब्रह्मा, विष्णु और महेश का संगम माना है। परमात्मा में डूबने वाले 'ॐ' में डूबें। ॐ से ही अस्तित्व ध्वनित होता है। 'ॐ' से ही परमात्मा अस्तित्व में घटित होता है। 'ॐ शांति:'- इसके आगे और कोई चरण नहीं है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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