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एक ओंकार सत नाम
जिसके श्वासोच्छ्वास में ॐ का वास है,
वह स्वयं योग रूप है।
नस्य वाचकः प्रणवः' - ‘प्रणव' ईश्वर का वाचक है। प्रणव का अर्थ है ॐ।
॥ ॐ सष्टि का जनक और प्रथम स्वर है। ॐ में आदि पराशक्ति की किरण और योगियों की योगमाया है। सृष्टि के समस्त शास्त्रों की धुरी ॐ है। समस्त व्रतों, धर्मों
और आश्रमों का सार है ॐ । एक ॐ कहते ही अनंत ब्रह्मांड में व्याप्त समस्त सिद्धबुद्ध-मुक्त चेतनाओं का आह्वान हो जाता है। जिसके श्वासोच्छ्वास में ॐ का वास है, यह स्वयं योग रूप है।
ॐ ध्वनि-विज्ञान की पराध्वनि है। ब्रह्मांड का संपूर्ण संकोच और विस्तार उसी की ध्वनि से ही संपादित हुआ है। संत-मनीषी लोग ध्वनि को ही विश्व की प्रथम अस्मिता मानते हैं।
वैज्ञानिकों के अनुसार संसार की मूल ऊर्जा विद्युत रही है, किंतु ऋषि-महर्षियों ने ध्वनि को मूल ऊर्जा माना है। वैज्ञानिक विद्युत् को पहला चरण मानते हैं और ध्वनि को दूसरा, जबकि मनीषी संतों ने ध्वनि को पहला चरण माना है और विद्युत् को अगला। ध्वनि से ही विद्युत् पैदा होती है।
वैज्ञानिकों और तत्त्व-मनीषियों में ध्वनि और विद्युत् को लेकर थोड़ा-बहुत मतभेद हो सकता है, किंतु दोनों ही पक्ष इस बात पर सहमत हैं कि ये दोनों ऊर्जा के अगुवा चरण हैं। बाइबिल में 'ध्वनि' बनाम 'शब्द' को ही पहले-पहल माना गया है। यीशु कहते हैं - शुरू में 'शब्द' ही था – ‘इन द बिगनिंग देयर वाज वर्ड'। 'ओनली दि वर्ड एग्जिस्टेड एंड नथिंग एल्स'। प्रारंभ में सिर्फ शब्द था। शब्द के अतिरिक्त और कुछ नहीं था। इसलिए हमारी साधना हमें उस शब्द की ओर ले
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