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________________ एक ओंकार सत नाम 101 जाती है, जो हम सबसे पहले थे। ऐसा समझें कि जिसने शब्द के संपूर्ण अंतरंग को जान लिया, उसने समग्र ज्ञान को आत्मसात् कर लिया। ___ शब्द का अर्थ वह नहीं है जो हम अपने होठों से बोलते हैं। शब्द का संबंध हिंदी और अंग्रेजी के अक्षरों से नहीं है। एक शब्द तो वह होता है जिसका उच्चारण मनुष्य करता है और एक शब्द वह है, जिससे मनुष्य स्वयं उच्चरित हुआ है। शब्द से ही विद्युत् बनी और विद्युत से ही मनुष्यता के चरण बढ़े। जब मनुष्य वापस अपने शब्द पर लौट आएगा, तो उसकी मनुष्यता भगवत्ता का रूप अंगीकार कर लेगी। एक बात तय है कि ध्वनि में ऊर्जा समाई हई है। यदि ध्वनि की शक्ति का प्रयोग किया जाए, तो हम सर्दी में भी गर्मी का अहसास कर सकते हैं। हिमालय की पहाड़ियों में रहने वाले नंगे बाबा लोग ध्वनि के परा-विज्ञान से परिचित हैं। आम आदमी का तो गर्मियों के मौसम में भी हिमालय में रहना कठिन होता है। वहीं ये संत-योगी लोग भयंकर बर्फीली सर्दी में भी सहज भाव से रहते हैं और वह भी पूरी तरह नग्न। कई संतों ने वस्त्र भी पहन रखे हैं तो वह सिर्फ अंग ढकने जितने ही हैं। निश्चित तौर पर उन्होंने ध्वनि से उच्च ताप पैदा करने की प्रक्रिया का आविष्कार कर लिया है। वे अपने श्वासोच्छ्वास में ही ध्वनि का एक गहनतम मंथन करते हैं। योगमार्ग में जिस प्राणायाम को अधिक महत्त्व दिया गया है, यदि वह समग्र और प्रखर हो जाए, तो सर्दी के मौसम में भी शरीर से पसीना चूने लगता है। शरीर में भी एक तापमान होता है। श्वास में भी उष्णता होती है। यदि ठिठुरते हुए दोनों हाथों को मिलाकर जोर से मला जाए, तो हाथ में भी गर्माहट आ जाती है। ऐसे ही श्वास को भी तीव्र गति के साथ लिया-छोड़ा जाए, तो शरीर में ऊर्जा की आग पैदा हो जाती है। तिब्बतियन बौद्ध भिक्षु बर्फीले मौसम में भी शरीर से पसीना निकाल लेते हैं। इसके लिए वे उच्च ध्वनि-उच्चार का प्रयोग करते हैं। उनका एक प्रसिद्ध मंत्र है - 'ॐ मणि पद्मे हुम्' । वे इसे बड़े जोर से रटते हैं और वह भी बड़े तीव्रगामी वेग के साथ। निश्चित तौर पर ऐसा करने से शरीर में गर्मी पैदा होगी। उष्णता के संपादन का कार्य मंत्र नहीं करता, अपितु शब्द या मंत्र को दोहराने की त्वरा और तीव्रता करती है। मंत्र इतनी तीव्रता पकड़ लेता है, मानो ओवरलेपिंग' हो। मंत्रोच्चार में संधि अंश भर भी न रहे। ऐसी स्थिति हो जाए, जैसे दो किलोमीटर दौड़ने के बाद होती है। हाँफने लग जाए वह। एक संत हुए सहजानंदघन। वे योगी थे। सर्दी के मौसम में वे बीकानेर के रेगिस्तानी टीलों पर साधना किया करते थे। अंधकार से भरी रातें, हिमवात-पिटी बालू, शरीर पर मात्र एक लंगोटी और खुला आकाश, ठिठुरती हवाएँ। आम आदमी Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003869
Book TitleAntar ke Pat Khol
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size23 MB
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