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________________ विक्षेपों पर विजय दुनि निया में लगभग 350 धर्म मानवता की सेवा में लगे हुए हैं । धर्म चाहे अतीत का रहा हो या आज उसका समय सापेक्ष जन्म हुआ हो, धर्म का इससे लेन-देन नहीं है। आखिर सब धर्मों का सार - संदेश क्या है ? चित्त की निर्मलता और व्यवहार की सौम्यता । और इसके लिए जरूरी है ध्यान और योग । ध्यान ही धर्म का सार है और यही अध्यात्म की कुंजी है । सौम्य चित्त का स्वामी होने के लिए मंगलमय जीवन और आचरण का प्रवर्तन करने के लिए ध्यान हमें अंतर्दृष्टि देता है । हम ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जिसमें आदमी के पास प्रसन्नता और प्रमुदितता तो कम है, पीड़ा और अंतर्व्यथा ज्यादा है। मैंने हजारों चेहरों को देखा है; चेहरों पर छाई मुस्कान को देखा है, उस मुस्कान के भीतर छिपी पीड़ा को भी देखा है । बाहर-बाहर हंसते-मुस्कराते चेहरों के भीतर तो दुख-दर्द का लावा सुलग रहा है बस, उनकी दुखती रग पर हाथ रखने भर की देर है कि तत्काल आंखों से आंसुओं की धार फूट पड़ेगी । मुस्कान के भीतर छिपी पीड़ा इतनी गहन हो चुकी है कि बगैर ध्यान के मनुष्य की संपूर्ण चिकित्सा संभव ही नहीं है 1 संसार ने अपने निर्माण का जितना इंतजाम किया है, उससे कहीं ज्यादा इंतजाम अपनी मृत्यु का किया है। दुनिया में इतने अधिक अस्त्र और शस्त्र बढ़ चुके हैं, इतना आतंक फैल गया है, घृणा और प्रतिस्पर्धा की राजनीति इस कदर खेली जाने लगी है कि कब तीसरा महायुद्ध छिड़ जाए, पता नहीं। यह प्रलय, यह कयामत यदि होगी तो स्वयं मनुष्य द्वारा मनुष्य जाति के लिए होगी । आज आदमी शरीर से इतना रुग्ण नहीं है, जितना मन से रोगग्रस्त है । मनुष्य के पास मन की बीमारियां ज्यादा हैं। लोग आए दिन आत्महत्याएं करते हैं; भाई-भाई आपस में झगड़ते हैं; समाज और समाज के बीच तलवारें चलती हैं। मनुष्य, मनुष्य के बीच के फासले बढ़े हैं, भले ही देशों की सीमाओं में कमी आई । यह दूरियां इस हद तक बढ़ी हैं कि पड़ोसी अपने पड़ोसी को नहीं पहचानता । एक समय था, जब पड़ोसी, पड़ोसी के हर सुख-दुख का बराबर भागीदार था; परिवार और पड़ोस Jain Education International 92 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003867
Book TitleNa Janma Na Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2003
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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