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________________ सिकंदर के आदेश पर संत को लेने सेनापति गया। सेनापति ने कहा-सम्राट सिकंदर का आदेश है कि तुम्हें चलना होगा। संत ने कहा-और अगर न चल पाए तो? तो तुम्हारा सिर धड़ से अलग कर दिया जाएगा। सेनापति ने जवाब दिया। संत ने कहा-जाओ, और अपने सम्राट से जाकर कह दो कि जिसको तुम मारना चाहते हो, वह तो पहले से ही मर चुका है। सेनापति ने जब सारी बात सिकंदर को बताई, तो सिकंदर ने स्वयं जाने का निश्चय किया। सिकंदर साधु के पास पहुंचा। साधु ने सिकंदर से कहा-उठाओ तलवार। हम भी देखते हैं, अपनी काया को अपने सामने गिरते हुए। जिस व्यक्ति ने अपने शरीर से इतनी भिन्नता देख ली है, वह व्यक्ति सदा-सदा साक्षी और मुक्त रहता है। उसके जीवन में न कामना रहती है, न शोक रहता है। वह हमेशा कैवल्य-लाभ को प्राप्त होकर जीता है। ___ अपनी केवलता का अनुभव कर लेने का नाम ही कैवल्य है; मैं एक शुद्ध चैतन्य भर हूं, इस बात का बोध कर लेने का नाम ही कैवल्य है। इतना-सा बोध चाहिए। वह व्यक्ति पृथ्वी से अलग, आकाश से मुक्त, अग्नि से वंचित, सृष्टि के समस्त पंच महाभूतों से भिन्न तत्त्व होता है। वह केवल चैतन्य-तत्त्व होता है, जो चैतन्य में जाकर समाविष्ट हो जाता है, ज्योति परम ज्योति में तदाकार हो जाती है। 91 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003867
Book TitleNa Janma Na Mrutyu
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherPustak Mahal
Publication Year2003
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size15 MB
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