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शून्य में शाश्वत के दर्शन
हमारे भीतर, हर मनुष्य, हर प्राणी के भीतर अस्तित्व का एक अंतहीन अंतर-मौन विराजमान है। यह मौन ही मनुष्य की शून्य, महाशून्य की दशा कहलाती है। इस शून्यता में जो बोध अनुभवगम्य बनता है हमारे अस्तित्व का उसी से संबंध है। मैं कौन हूँ ? उस अंतर-मौन में इसका समाधान हमारे साथ लगता है।
हमारा अंतरतम-केन्द्र मात्र शून्य ही है। एक ऐसा शून्य, जो हमारे स्थूल अनुभवों में नहीं आ सकता। जो अनुभव में आता है वह द्रव्यात्मक होता है, पर्यायमुलक होता है, सत्तामलक नहीं होता। शन्य का सम्बन्ध सूक्ष्म से है। शून्य के साकार होने से ही जीवन में शाश्वत का आविष्कार होता है। हम जो कुछ कर रहे हैं वह बोधमूलक कम, क्रियामूलक ज्यादा ८२ / ध्यान का विज्ञान
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