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हो गया कि उसने पूछा, 'ओ महान आदमी! क्या मैं भी उस महान संपदा का उपभोक्ता हो सकता हूँ? संत ने कहा, 'तुम्हें तो साधना-पथ वैसे भी मिला हुआ है। पहरेदारी तो तुम्हें करनी आती है। बस, दिशा बदलने की बात है। महल के बाहर की बजाय महल के भीतर पहरेदारी करो। अपने भीतर, 'स्व' को देखते हुए।' ___हर व्यक्ति अपना मालिक खुद हो। हम ही अपने गुरु और हम ही अपने तारक। 'पहरेदारी' इसमें तो साधना का बीज है, ध्यानपूर्वक देखना ही ध्यान है। सजगतापूर्वक अंतरमन की पहरेदारी करना ही ध्यान की बैठक है। अंतर्-मौन और अंतर्-शून्य उपलब्ध होना चाहिए। चाहे वह बाहर के आकाश को देखकर उपलब्ध हो या अंतस्-आकाश को देखकर।
घट-घट में आकाश समाहित है। अंतस्-आकाश में जीने वाला अपनी अंतर्-आत्मा और अखण्ड आनंद का स्वामी है। वह निज में रहते हुए वैसे ही सर्वव्याप्त और अस्तित्व की समग्रता से जुड़ा हुआ रहता है जैसे यह व्यापक, विराट, अनंत आकाश है।
शून्य में समग्रता की खोज / ८१...
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