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शून्य में समग्रता की खोज
आकाश इतना व्यापक, विराट और अनंत है कि हर आकार में वह निराकार समाया हुआ है। स्थूल जिस सूक्ष्म के आधार पर खड़ा है, वह आकाश यानी मौन, आकाश यानी ऊर्जस्वितता, आकाश यानी जो हमें आधार दे। जिसे हम आकाश की संज्ञा देते हैं, वह तो आकाश है ही। एक साँस से दूसरी साँस के बीच हमें जिस विराम का, अन्तराल का अनुभव होता है, वह भी आकाश ही है। वो साँसों के बीच अंतरनिहित रिक्तता आकाश है। उससे भी गहरा सत्य यह है कि साँस में भी आकाश निहित है। बगैर आकाश के अस्तित्व का कोई भी घटक मूर्त रूप नहीं ले पायेगा। आकाश की लोक और अलोक में हर जगह सर्वव्याप्ति है। ___ आइंस्टीन ने अस्तित्व की संरचना में दो मुख्य तत्व माने हैं - एक ७६ / ध्यान का विज्ञान
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