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________________ लगे। माँ, भाई और पत्नी तो छाती पीट-पीट कर रोने लगे । श्मशान - यात्रा की तैयारी चल रही थी तभी उसके गुरु वहाँ पहुँच गये। उन्होंने सारी स्थिति भाँपी और कहा कि आपके इस बेटे को जीवित तो किया जा सकता है, मगर घर-द्वार पर आई हुई मौत खाली हाथ नहीं लौट सकती। आप में से कोई हो जो इसके लिए मरने को तैयार हो, तो युवक जीवित हो सकता है। यह सुनते ही सभी के चेहरों के तोते उड़ गये 1 सभी एक दूसरे की बगलें झाँकने लगे। मरने वाले के पीछे कोई भी मरने को तैयार नहीं हुआ । लोग युवक की मृत्यु का दुखड़ा तो भूल ही गये । वातावरण पूरी तरह निस्तब्ध हो गया । घर वालों ने कहा, 'मरने वाला तो मर गया । हमारा कोई एक ही बेटा या भाई थोड़े ही है । एक चला भी गया तो क्या हुआ ? हम अपना काम चला लेंगे।' संत ने एक-एक से पूछा । सब नट गये। युवक स्वयं को सबसे निस्पृह पाया । उसके मन में उनके प्रति रहने वाला मोह भी विगलित हो गया। अचानक वह उठ बैठा। लोग चौंके क्या यह सब संन्यास और मृत्यु का अभिनय था ? युवक ने इतना ही कहा मेरे बिना तुम सब लोगों के चल जायेगा इसलिये मैं निश्चित हूँ । घर वाले कोई तरह की प्रतिक्रिया करते, उससे पहले ही युवक संत के साथ रवाना हो गया। हम स्वयं को ऊपर उठाते जायें, उन्मुक्त होते जायें, जो हो रहा है जो चल रहा है वह तो ऐसे ही चलता रहेगा, अपना राम तो अपने में मस्त रहे। हमें सदा आत्म-बोध रहे । आत्म-स्मरण और आत्म - बोध ही स्वयं के जीवन की वास्तविक संपदा है। आँख खोलें, जगत् को देखें; पलकें झुकाएँ और फिर अपने को देखें । जागरूक दशा के साथ देखें तो आप पायेंगे कि जो है सब परिधि पर है यहाँ तक कि अपना शरीर, अपना मन भी ! केन्द्र में तो केवल एक ही 'अंतर - बोध' है - 'हाँ, मैं हूँ । ' जीवन-पथ से गुजरते हुए हमारे हाथ में यह आत्म - बोध का दीप थमा हुआ रहे, यह पर्याप्त है । अप्प दीपो भव- आप अपने दीपक स्वयं हैं। आत्मदीप सदा ज्योतिर्मान और प्रकाशवान रहे, यही सजगता चाहिये Jain Education International आत्म बोध : शांति का सूत्रधार / ७५ www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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