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________________ जब किसी युवक ने एक संत पर लाठी का प्रहार किया, लाठी उसके हाथ से छिटक गयी। संत न लाठी उठायी और युवक को यह कहते हुए आवाज़ दी कि अपनी लाठी तो लेते जाओ। संत के साथ चल रहे एक अन्य पथिक ने संत से पूछा कि युवक को लाठी मारने की बजाय आप लाठी लौटा रहे हैं। क्या आपको क्रोध नहीं आया? संत ने कहा, 'जो बात तुमने मुझे पूछी है वही मैंने अपने आप से पूछी। मेरी अंतर-आत्मा ने कहा जिस पेड़ के नीचे तुम खड़े हो अगर उसकी शाखा, संयोगवश टूटकर तुम्हारे कंधे पर गिर जाती तो क्या तुम उस पेड पर लाठी चलाते? पथिक ने कहा, 'पेड़ से शाखा का टूटकर हम पर गिर जाना महज संयोग ही होता।' संत ने कहा, क्यों न इसे भी हम संयोग ही समझ लें। जो जीवन में घटित होने वाली घटनाओं को संयोग की संज्ञा दे देते हैं, उनकी न परिधि अशांत होती है न केन्द्र उन्हें तो सदा शांति का ही बोध रहता है। आप इसे यों समझें कि किसी की बात पर आप बड़े उत्तेजित हो गये। आप बदले में कुछ करें उससे पहले ही वह कह दे, 'मैंने तो तुझसे मज़ाक किया था।' आप आश्चर्य करेंगे कि यह सुनते ही आपकी उत्तेजना दो पल में काफूर हो गयी। आप शांत हो गये। भले ही इसे मज़ाक कहो, पर अगर सब कुछ को तुम मज़ाक ही समझ लो और सदा अंतरमौन की मस्ती में रहो, तो ऐसा करके हमने शाश्वत जीवन का आविष्कार कर लिया। स्वयं के वास्तविक सुख-शांति को जीवन में जीने का सूत्र पा लिया। कहते हैं : एक युवक साधना के प्रति निष्ठाशील हुआ और ऐसा करने के लिए उसने संन्यास का संकल्प स्वीकार किया। घर वालों से उसने अनुमति चाही, पर सबने साफ इंकार कर दिया कि अगर तुमने संन्यास ले लिया तो हम सब तुम्हारे पीछे अपने प्राण दे देंगे। युवक ने अपने गुरु के सामने अपनी समस्या रखी। गुरु ने पूछा कि क्या तुम अपने संकल्प पर दृढ़ हो? युवक ने स्वीकृतिमूलक ज़वाब दिया। गुरु ने उसे साँस रोकने का एक प्रयोग बताया और प्रयोग को आजमाइश करने के लिए कहा। युवक घर पहुँचा, साँस रोकी और घर के बीच आँगन में सो गया। घरवालों ने नाड़ी देखी और युवक को मरा हुआ पाया। घर के और मुहल्ले के सभी लोग रोने ७४ / ध्यान का विज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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