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आत्म- बोध : शांति का सूत्रधार
मनुष्य का जीवन प्राणिमात्र के लिए महान वरदान है। आत्मस्मरण हमारे जीवन की सबसे बड़ी संपदा है; आत्म-विस्मरण जीते जी मृत्यु । आत्म-स्मरण से बढ़कर कोई पुण्य नहीं; आत्म - विस्मरण से बढ़कर कोई पाप नहीं । स्वयं का सतत स्मरण बनाये रखना ही जीवन में धर्म, अध्यात्म और ध्यानयोग को आत्मसात् किये रहना है। कोई अगर मुझसे पूछे कि अध्यात्म का बीज मंत्र क्या है ? अध्यात्म को सिद्ध करने की मूलभूत पगडंडी क्या है तो ज़वाब होगा स्वयं का सतत स्मरण । जिसे स्वयं का स्मरण है, स्वयं की चेतना के प्रति सजगता है, वह हर पल, हर क्षण आत्मा को जी रहा है। उसकी साँसों में, उसकी धड़कन में, यहाँ तक उसकी करवट बदलने में भी उसके अंतर्यामी का प्रकाश है।
७० / ध्यान का विज्ञान
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