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में घर-द्वार पर आये हुए किसी याचक को खाली हाथ लौटा देना क्या भगवान को लौटाना नहीं है? रोटी के दो टुकड़े पाने के लिए घर में घुस आये कुत्ते की पीठ पर चार लाठी बरसा देना क्या उस साँई की कमर को लहू-लुहान करना नहीं है? भले मानुष! तुम केवल एक रूप में ही भगवान को क्यों देखते हो? सभी रूप उसके हैं। सच तो यह है कि तुम भी उसी के रूप हो। मैं भी उसी का रूप हूँ। वही मैं हूँ। न मैं, न तुम, जो कुछ है सब वही है। फिर इतनी स्वार्थखोरी क्यों? मायाजाल में उलझाव क्यों? हमारा नसीब अगर और लोगों के भी काम आता है तो भगवत्कृपा, यह हमारा परम सौभाग्य है।
हृदयवान होने का तीसरा मगर बड़ा महत्वपूर्ण सूत्र है : सदा आनंदित रहो। परिस्थितियाँ चाहे अनुकूल रहें या प्रतिकूल, हमारी आत्मा का आनंद मंदिर के अखण्ड दीपक की तरह प्रज्वलित रहे। आनन्द का खण्डित होना जीवन की प्रतिमा का खण्डित होना है। खण्डित प्रतिमा क्या काम की? आनंद-रहित जीवन किस अर्थ का! सम्भव है दुनिया तुम्हें कष्ट दे। तुम्हारे साथ विश्वासघात करे मगर तुम अपनी महानतम में कमी मत आने दो। तुम अपने आत्म-विश्वास पर अविचल रहना। दुनिया तो देगी मीरा को जहर, क्योंकि उसके पास जहर के अलावा देने को है ही क्या? दनिया तो ठोकेगी महावीर के कानों में कीलें, दुनिया तो लटकाएगी जीसस को सलीब पर। दुनिया तो काटेगी मंसूर के पाँव, मगर ऐसा होने से महावीर की सहिष्णुता के आनंद को थोड़े ही बेधा जा सकता है। जीसस के प्रेम के सुख को थोड़े ही लटकाया जा सकता है। सुकरात के सत्य के गौरव को थोड़े ही विषपान कराया जा सकता है। मंसूर के 'अनलहक' को थोड़े ही काटा जा सकता है। जिसके पास जो होगा वह वही देगा। किसी के द्वारा हमें नालायक कहना यह उसकी कोई बीमारी होगी, मज़बूरी होगी। किसी के नालायक कहने से हम अपने आप को नालायक क्यों मान बैठते हैं ? नालायक के बदले में अगर हमने भी जवाब में नालायक ही कहा तो इसका अर्थ यह हुआ कि हमने स्वीकार कर लिया कि उसने जो कहा हम वह हैं।
हमें तो सदा प्रसन्न चित्त रहना चाहिए। हर परिस्थिति के बावजूद आनंद-विभोर रहना चाहिए। महावीर की सामायिक, कृष्ण के समत्व-योग
६८ / ध्यान का विज्ञान
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