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________________ संत हृदय नवनीत समाना, कहा कविन पै कहा न आना। निज परिताप द्रवै नवनीता। पर-दुख द्रवै सो संत पुनीता ॥ कहते हैं : 'संत हृदय नवनीत समाना - संतों और सज्जनों का हृदय मक्खन की तरह कोमल होता है, पर तुलसीदास कहते हैं कि यह बात तो ठीक है मगर इस बात को कहना नहीं आया। क्योंकि मक्खन तो अपने नीचे आँच आते ही पिघल पड़ता है जबकि संत वह है जो औरों पर आई हुई आँच को, आपदा को, विपदा को, पीड़ा को देखकर पिघल जाता है। एक मनुष्य तब दूसरे मनुष्य के लिए अपने स्वार्थों का त्याग करता है। अपने सुखों का वितरण करता है। ऐसा करना मनुष्य के द्वारा मनुष्य के लिए कुरबानी और बलिदान है। हम अपने हृदय में करुणा का निर्झर फूटने दें। हमें करुणा का कोई निमित्त मिले या न मिले, हमारी करुणा में कोई कटौती नहीं होनी चाहिये। तुम्हें अगर महावीर की अंहिसा और जीसस के प्रेम को जीना हो तो मैं कहूँगा कि हम सब करुणा को जीएँ। दुनिया द्वारा जीसस को सलीब पर लटकाया जाना पर इसके बावजूद जीसस द्वारा यह प्रार्थना करना कि हे प्रभु, इन्हें माफ कर, ये नहीं जानते कि ये क्या कर रहे हैं- यह वास्तव में करुणा का अनुपम उदाहरण है। जीसस का प्रेम वास्तव में करुणा को ही मिला हुआ दूसरा उपनाम है। मैं आपको करुणा के मन्दिर में आने के लिए निमंत्रण देता हूँ। आप आइये किसी अनाथालय में और वहाँ जरूरतमंद असहाय बच्चों के लिए अपना प्यार उड़ेलिए। उन्हें अपनी खुशियों का हिस्सा बनाइये। आखिर वे सब भगवान के ही रूप हैं। किसी पत्थर की प्रतिमा पर आपकी श्रद्धा दूध चढ़ा सकती है, तो क्या भगवान की इस जीवित प्रतिमा को आप दूधपान नहीं करवा सकते। मन्दिर में जाकर आप अपना मत्था टेकते हैं यह आपका समर्पण और सौभाग्य है, पर मन्दिर के बाहर बैठकर भीख माँगकर अपना गुजारा करने वाले बच्चे के आँसू पोंछना क्या उस घट-घटवासी भगवान की पूजा नहीं है? हमारी धर्म-किताबें कहती हैं कि भगवान न जाने किस रूप में तुम्हारे द्वार पर पहुँच जाये। ऐसी स्थिति ध्यान का मन्दिर : मनुष्य का हृदय / ६७ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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