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भले ही हो गया हो, पर यह जानती है कि इंसानियत का क्या अर्थ है ।'
भगवान उन लोगों से प्यार करते हैं जिनका हृदय दयालु है, जिनमें करुणा है, जो औरों को पीड़ित देखकर मोम की तरह पिघल सकते हैं । इस्लाम की हदीसों में कहा गया है कि एक बार जन्नत के फरिश्तों ने खुदा से पूछा, 'या अल्लाह ! क्या दुनिया में चट्टानों से भी कोई सख्त चीज़ है?' 'हाँ' खुदा ने कहा 'लोहा चट्टान से भी सख्त होता है जो चट्टान को तोड़ सकता है।' पूछा गया और लोहे से सख्त, जवाब मिला, 'आग। क्योंकि वह लोहे को पिघला सकती है।' फ़रिश्तों ने पूछा, 'और आग से बढ़ कर ?' खुदा ने कहा, 'पानी, वह आग को बुझा सकता है।' पूछा गया पानी से ज़्यादा सख़्त ? ज़वाब मिला 'हवा, जो पानी में लहरें पैदा कर सकती है ।' पूछा गया उससे मज़बूत चीज़ है ? खुदा ने कहा, 'मनुष्य का हृदय जो दया- द्रवित होकर औरों की पीड़ा में मोम की तरह पिघल जाता है, अपने दुख-सुख की परवाह किये बिना औरों की मदद किया करता है। औरों के सुख-दुःख में समानुभूति का स्वभाव रखता है । ओह ! कैसे समझाया जाए कि हृदय से बढ़कर जीवन का कोई केन्द्र नहीं है । हृदयवान को ही संसार में जीने का हक है क्योंकि संसार उसे अपने हृदय में बसाकर रखता है। तुम ऊँची-ऊँची बातें छोड़ो, तर्क-वितर्क, चर्चा - उपदेश से स्वयं को अलग हटाओ और हृदय के होकर हृदय से सब के साथ जीओ ।
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हृदयवान होने के लिए पहला सूत्र है : और अधिक प्रेमपूर्ण बनो । जीवन को प्रेम से ओत-प्रोत करो । मित्र तो मित्र, अगर कोई शत्रु भी है तो उसे भी अपने प्रेम से वंचित मत रखो। कोई शत्रु है तो उसे क्षमा कर अपना प्रेम प्रगट करो। कोई दूर का है तो उसे भोजन के लिए आमंत्रित करके अपने करीब का बनाओ । शरणागत की रक्षा करो और अतिथियों का सम्मान । बड़ों का विनय करो और बराबर वालों को मित्रता का अहसास दो। बोलो तो इस तरह कि वाणी नहीं, प्रेम और मुस्कान के फूल झर रहे हैं। कबीर तो ग्राहक में भी राम को निहारते थे । वास्तव में हमारा प्रेम इतना विस्तृत हो कि हमारा औरों के साथ होने वाला व्यवहार कोरी औपचारिकता न हो। वह व्यवहार भी परमात्मा को समर्पित किया गया प्रेम हो । प्रेम से बढ़कर आखिर पूजा क्या !
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ध्यान का मन्दिर : मनुष्य का हृदय / ६५
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