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________________ संजीवनी की धारा मिलती जाएगी। मन का हृदय में स्थित होना मन की सम्यक् चिकित्सा है। जो निद्रा न आने से परेशान हैं, वे भी हृदय में ध्यान धरें। आँखों से हृदय को झाँकें। हृदय में शांति का अनुभव करें और शांत हृदय से सो जाएँ। ऐसा करने से न केवल उन्हें प्रिय और मधुर नींद आएगी, वरन् सुबह उठोगे, तो अपने आपको इतना तरोताज़ा पाओगे कि मानो सूर्य की रोशनी पाकर कोई गुलाब का फूल खिला हो। हृदय में उतर कर, हृदयवान् होकर आप संसार में जीयें तो संसार आपके लिए स्वर्गलोक होगा। हृदयहीन होकर संसार को देखोगे तो संसार न केवल तुम्हें नरक की खान लगेगा, वरन् स्वार्थ, हिंसा और क्रूरता के चलते हम स्वयं को भी नरकवासी बना बैठेंगे। प्रसन्न हृदय से संसार को देखोगे तो तुम्हें काँटें कम, फूल ज्यादा दिखाई देंगे। ऐसा नहीं कि दुनिया में काँटे नहीं होंगे। वे काँटे होंगे किसी और के लिए। तुम तक तो पहुँचतेपहुँचते वे बेअसर हो जायेंगे। संभव है वे काँटे तुम्हारे लिए फूल भी बन जाएँ। काँटा तो वास्तव में कसौटी है। ___ कोई अगर पूछे कि इंसानियत का अर्थ क्या है तो मेरी ओर से जवाब होगा - हृदयपूर्वक जीना। इंसानियत का बीज हृदय है। इंसानियत गंगा है तो हृदय उसका उत्पत्तिस्थल गंगोत्री। मनुष्य का हृदय औरों को दु:खी देखकर करुणाद्रवित होता है और उस करुणा से अभिभूत होकर मनुष्य जो कुछ करता है है वही मानवता और इन्सानियत कहलाती है। यह सारा जहाँ आपसे प्रेम और करुणा की अपेक्षा करता है। भगवान करे आप सच्चे इंसान हों। इंसानियत का अर्थ आपके जीवन से मुखर हो। मुझे याद है : एक स्त्री को देखकर लोग घृणा किया करते थे क्योंकि उनकी नज़र में वह पापी थी। उसने पाप का सेवन किया था। उस पापी स्त्री ने एक प्यासा कुत्ता देखा, जिसकी जीभ लटक गयी थी। वह प्यास के मारे मरा जा रहा था। बिचारा जानवर पानी के लिए तड़प रहा था, पानी के लिए प्रार्थना कर रहा था। उस स्त्री ने उस कुत्ते को देखा। उसने अपनी जूती उतारी और उसमें पास के कुए से पानी भर लायी। उसने वह पानी कुत्ते को पिला दिया। प्यासे की जान बच गयी; लोगों की राय बदल गयी। उन्होंने कहा, 'भगवान् ने इसके पापों को माफ़ कर दिया है। इससे पाप ६४ / ध्यान का विज्ञान Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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