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ध्यान का मन्दिर : मनुष्य का हृदय
ससार के हर देश में तीर्थ है और हर नगर में मन्दिर। मनुष्य बड़े श्रद्धाभाव के साथ इन मन्दिरों और तीर्थों की यात्रा और अर्चना करता है। यह हमारी मानवीय मन की उदात्तता है। मैं एक ऐसे मन्दिर और तीर्थ की चर्चा कर रहा हूँ जो उस हर जगह है जहाँ मनुष्य खुद है। आम मन्दिर या तीर्थ की यात्रा करनी हो, तो हमें वहाँ तक जाना पड़ता है, किन्तु यह एक ऐसा मन्दिर है जिसके लिए कहीं जाना नहीं पड़ता। केवल आनन्दभाव से उसमें उतरना भर होता है। सम्भव है मन्दिर जिस कौम की ओर से बना हुआ है उसमें दूसरी कौम के आदमी को जाने की मनाही भी हो पर हम जिस मन्दिर की ओर बढ़ रहे हैं वहाँ जाति-पाँति, राजनीति, वर्गवर्ण-पंथ का कहीं कोई सम्बन्ध नहीं है। और वह मन्दिर, वह तीर्थ हमारा
ध्यान का मन्दिर : मनुष्य का हृदय / ६१
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