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की हर तरह की बीमारियों पर विजय पाई जा सकती है। ___अध्यात्म ने मनोस्वास्थ्य और उसके परिवर्तन के लिए ध्यान-योग का मार्ग प्रशस्त किया है। हम ध्यान के द्वारा अपने मन को जानें और शांततटस्थ भाव से अपने मन को पहचानें; मन के साक्षी बनें। मन की जिन विषयों के प्रति आसक्ति है, उनके प्रति अनासक्त हों; मन वृत्तियों के प्रति जागरूक बनें और मन के प्रति साक्षीत्व को सदा स्मृति में रखें। यह कठिन अवश्य है, किन्तु ध्यान के मार्ग से न केवल मन को पहचाना जाता है, वरन् वह स्वतः शांत भी होता है, विकृतियों की जड़ स्वतः कटती है। जब तक हम मन से संयुक्त रहेंगे, तो मन अपने बहाव में हमें बहा ले जायेगा, वहीं अगर हम मन से विलग रहें, तो मन पर स्वयं का स्वामत्वि बना हुआ रहता है। ध्यान मनुष्य को शून्य और मौन का परिवेश प्रदान करता है; बुद्धत्व का कमल और संबोधि की सुवास प्रदान करता है।
हमें अपने मन को हर रोज पढ़ लेना चाहिए, उसे आत्मविश्वास के जल से प्रक्षालित कर लेना चाहिए। चूंकि वातावरण विकृत और असंयमित है, इसलिए मन के मार्गों पर रोज झाड़-फूंक कर साफ-सुथरा कर लेना चाहिए; संकल्पों के साथ जीवन के हर नये दिन में प्रवेश करना चाहिए। मन पर जब हम ध्यान देंगे, तो मन में कुछ ज्यादा ऊहापोह महसूस होगी, क्योंकि मन में मैल है, विकृतियाँ हैं। जैसे-जैसे मैल कटेगा कंदील का काँच साफ होगा, भीतर जल रही ज्योति स्वत: जीवन को ज्योतिर्मय करेगी। हम जीवन में नियमन और परिमितता लाएँ, ख़राब चीजें न देखें, ख़राब किताबें न पढ़ें, व्यवहार को शुद्ध करें और शुभ दृष्टि के स्वामी बनें, सर्वकल्याण की कामना करें और सबके प्रति मंगल-मैत्री का भाव रखें। एक ओर से मन को सही वातावरण दिया जाए और दूसरी ओर से मन पर ध्यान देकर उसे सम्यक् मार्ग प्रदान किया जाये, तो ऐसा करके हम अपने हाथों अपने आपको बहुत बड़ा वरदान देंगे। पवित्र मन के द्वारा मिली प्रेरणा जीवन के लिए वेद-वाणी के समान है, परमात्मा के अशेष आशीष-वचन की तरह है।
६० / ध्यान का विज्ञान
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