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________________ अगर डायरी के पन्नों पर उकेर लिया जाये, तो इससे मन हल्का तो होगा ही, हम अपने आपसे मुखातिब भी होंगे, मन में जमे कूड़े-करकट को हटाने में भी मदद मिल सकेगी। I मनुष्य को स्वप्न आते हैं । हम अपने सपनों के प्रति लापरवाह रहते हैं, जबकि मन की पहचान करने के लिए सपने बड़े मददगार साबित हो सकते हैं। सपने तो हमारे लिए सी. आई.डी. का काम करेंगे। हर सपने में एक रहस्य छिपा होता है और वह रहस्य हमारे अन्तर्मन का होता है । आखिर जो मन में होगा, वही सपने के रूप में साकार होगा। सपने यदि डरावने हैं, तो इसका अर्थ है मन में भय छुपा हुआ है; चोरी के सपने देखने को मिले तो इसका अर्थ है मन में चोर दुबका बैठा है; हत्या और बलात्कार से भरे सपने शैतान मन की अभिव्यक्ति है । इन सपनों के द्वारा हम अपने बिगड़े हुए मन की नस्ल को पहचान सकते हैं । भयभीत मन को चाहिए कि वह सकारात्मक सोच और आत्मविश्वास का स्वामी बने; विकृत मन को चाहिए कि वह मन से ऊपर उठकर अस्तित्व की उच्च सत्ता के संपर्क में आये। अवसाद और चिंतातुर मन के लिए समता और प्रसन्नता अचूक उपाय हैं। ऐसे ही रोते-बिलखते हुए मन को यदि हँसी-खुशी और प्रकृति का सुरम्य वातावरण दिया जाये तो मन मनुष्य के जीवन में नये क्षितिजों को उन्मुक्त कर सकता है डॉ. बेच ने एक ऐसी चिकित्सा पद्धति का आविष्कार किया है जिसमें मानसिक लक्षणों के द्वारा शारीरिक रोगों का उपचार होता है। बेच ने माना है कि शरीर के रोगों की जड़ शरीर में नहीं, मन में होती है । मन की कमजोरी, उसके लक्षण हाथ लग जाएं, तो मानसिक अवसाद का इलाज करके अवसाद वर को भगाया जा सकता है; मानसिक चिंता की चिकित्सा करके अनिद्रा की शिकायत को दूर किया जा सकता है; मानसिक भय का उपचार करके शारीरिक कमजोरी को शक्ति का जामा पहनाया जा सकता है । बहुत बार ऐसा होता है कि शरीर के किसी एक रोग के लिए बीसों दवाएँ बदल दी जाती हैं, तब भी आरोग्य - लाभ प्राप्त नहीं हो पाता । ऐसी स्थिति में हमें रोग की मूल जड़ को तलाशना होता है और उस जड़ का संबंध मन से होता है । इस तरह मनस् चिकित्सा पद्धति के द्वारा तन-मन Jain Education International ध्यान : अन्तर्मन का आरोग्य / ५९ For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003865
Book TitleDhyan ka Vigyan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages130
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size21 MB
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